Showing posts with label RAS SASHTRA -SECOND YEAR NOTES FOR UPVAID COURSE. Show all posts
Showing posts with label RAS SASHTRA -SECOND YEAR NOTES FOR UPVAID COURSE. Show all posts

Saturday, 1 December 2018

हिंग्वाष्टक चूर्ण की निर्माण विधि, सामान्य गुण और मात्रा Hingvaashtak churan

हिंग्वाष्टक चूर्ण की निर्माण विधि, सामान्य गुण और मात्रा -


हिंग्वाष्टक चूर्ण- 


घटक द्रव्य -

  • हींग ---------10 ग्राम 
  • सोंठ ---------10 ग्राम 
  • पिप्पली ------10 ग्राम 
  • काली मिर्च --10 ग्राम 
  • अजवायन -- 10 ग्राम 
  • सैंधव नमक -10 ग्राम 
  • सफ़ेद जीरा -10 ग्राम 

निर्माण विधि - 

 इन सभी औषधि द्रव्यों को बराबर भाग लेकर साफ़ करके बारीक पाउडर बना लें, इसके बाद इसको कपड़े या छलनी में छानकर शीशी में भरकर रखें | 


मात्रा और अनुपान -

हिंगवाष्टक चूर्ण को 2 रत्ती से 8 रत्ती अथवा 250mg से 1 ग्राम की मात्रा में भोजन के पहले ग्रास ( निवाले ) में घी साथ सेवन करना चाहिए | 


सामान्य गुण और उपयोग - 

हिंग्वाष्टक चूर्ण जठराग्नि को दीप्त करता है | यह चूर्ण पेट में गैस, अपच, अरुचि, बदहज़मी, पेट का फूल जाना, अजीर्ण , पेट में दर्द और खट्टी डकारें आना आदि रोगों का नाश करता है |इसका प्रयोग वात प्रधान दोषों को शांत करने के लिए किया जाता है | यह पाचन तंत्र को ठीक करता है | भूख बढ़ाता है और अम्लपित्त का नाश करता है |  




Thursday, 29 November 2018

सितोपलादि चूर्ण की निर्माण विधि, सामान्य गुण और मात्रा -Sitopaladi churan

सितोपलादि चूर्ण की निर्माण विधि, सामान्य गुण और मात्रा -


सितोपलादि चूर्ण- 


घटक द्रव्य -



  • दालचीनी- एक भाग 
  • छोटी इलायची- दो भाग 
  • पिप्पली - चार भाग 
  • वंशलोचन - आठ भाग 
  • मिश्री - सोलह भाग 


निर्माण विधि - 


उपरोक्त सभी औषधियों को साफ़ करके अच्छी तरह पीस कर पाउडर बना लें , इसी मिश्रण को सितोपलादि चूर्ण कहा जाता है | 


मात्रा और अनुपान - 


सितोपलादि 3 से 6 ग्राम की मात्रा लेकर शहद या घी को बराबर मात्रा में मिलाकर रोगी को चाटने को दिया जाता है | 


सामान्य गुण और उपयोग -


सितोपलादि चूर्ण का प्रयोग श्वास, कास और क्षय आदि रोगों का नाश करने के लिए किया जाता है | जिसकी जीभा को स्पर्श और मधुर रस का ज्ञान ना हो रहा हो, अरुचि, ज्वर, भोजन ना पचता हो, रक्तपित्त आदि से पीड़ित रोगियों को सितोपलादि चूर्ण का सेवन कराना चाहिए | यह हाथ, पैरों और शरीर में पैदा होने वाली जलन या दाह में लाभकारी होता है | 




Tuesday, 27 November 2018

टंकण भस्म की निर्माण विधि, सामान्य गुण और मात्रा -Tankan bhasm

टंकण भस्म की निर्माण विधि, सामान्य गुण और मात्रा -

टंकण भस्म- 

घटक द्रव्य -


शुद्ध टंकण या सुहागा सफ़ेद 

निर्माण विधि-


टंकण भस्म बहुत आसानी से बन जाती है इसको सुहागे की खील भी कहा जाता है | टंकण भस्म बनाने के लिए सबसे पहले सुहागा को बारीक़ पीसकर पाउडर बनाकर लोहे की कड़ाही में डालकर आंच पर पकाया जाता है, पहले यह पिघलता है और फिर धीरे धीरे इसका पानी सूखने लगता है और खील की तरह फूलने लगता है जब यह अच्छी तरह फूल जाये तो ठंडा होने के बाद इसको पीसकर बारीक़ पाउडर बना लें और इसको शीशी में भरकर रखें | 

टंकण भस्म की मात्रा और अनुपान -


टंकण भस्म को 125 mg से 250 mg की मात्रा शहद और घी के साथ मिलाकर खाने को देते है | 

उपयोग -


टंकण भस्म का प्रयोग कफ-पित्त रोगों जैसे - खांसी, साँस की तकलीफ, पेटदर्द, मुँह के छाले आदि में किया जाता है | 







Sunday, 25 November 2018

ब्राहमी शर्बत की निर्माण विधि, सामान्य गुण और मात्रा Brahami Sharbat

ब्राहमी शर्बत की निर्माण विधि, सामान्य गुण और मात्रा -

ब्राहमी शर्बत-

घटक द्रव्य - 

ब्राहमी के सूखे पत्ते = 50 ग्राम 
स्वरस या जूस = 200 मिलीलीटर 
चीनी/ शकर  = 750 ग्राम  
निम्बू सत्व = 1/4  चम्मच 

निर्माण विधि - 

ब्राहमी के सूखे पत्तों को स्टील के बर्तन में रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह आंच पर पकने के लिए रख दें | उसके बाद इसको छानकर कढ़ाई में डालकर 750 ग्राम चीनी मिलाकर धीमी आंच पर पकाते रहना है, जब यह थोड़ा गाढ़ा होने लगे तो इसमें चम्मच का चौथा हिस्सा निम्बू सत्व मिलाकर हिलाते रहें, ब्राहमी शर्बत के निर्माण के लिए ताजे ब्राहमी के रस का प्रयोग भी किया जा सकता है और चीनी की जगह शर्करा का प्रयोग कर सकते है| जब शर्बत थोड़ा गाढ़ा हो जाये तो आंच से उतारकर ठंडा होने के बाद कांच की बोतल में भरकर रख लें | 

मात्रा और अनुपान -

ब्राहमी शर्बत को 3-4 चम्मच की मात्रा में एक गिलास पानी में मिलाकर पीने को दिया जा सकता है | 

ब्राहमी शर्बत का उपयोग - 

ब्राहमी शर्बत का प्रयोग मानसिक तनाव, अनिद्रा में किया जाता है | ब्राहमी शर्बत बुद्धिवर्धक भी होता है इसलिए मस्तिष्क दौर्बल्य में इसका प्रयोग लाभकारी होता है | 



Friday, 23 November 2018

तुवरी भस्म की निर्माण विधि,सामान्य गुण और मात्रा Tuvari Bhasam

तुवरी भस्म की निर्माण विधि,सामान्य गुण और मात्रा -


तुवरी भस्म - 


घटक द्रव्य -


शुद्ध स्फटिक ( Alum ) इसको हिन्दी में फिटकरी के नाम से जानते है | 

निर्माण विधि -  


स्फटिक को बारीक़ पीसकर गर्म तवे या कड़ाई में डालकर अच्छी तरह पकावें, जब तक इसका द्रव भाग अच्छी तरह सूख नहीं जाता तब तक धीमी आंच पर पकाते रहें | यह पककर फूलने लगती है और इसका रंग भी सफ़ेद हो जाता है | ठंडा होने के बाद इसको बारीक पीसके कांच की शीशी में सुरक्षित भरके रख लेते है | 

तुवरी भस्म की मात्रा और अनुपान -


इसकी 125mg  से 250mg की मात्रा दिन में एक या दो बार भोजन से पहले या बाद में शहद या दूध के साथ ले सकते है | 

तुवरी भस्म का उपयोग - 

इसका प्रयोग त्वकरोग ( skin diseases ), कास-श्वास रोग ( खांसी ), ज्वर ( बुखार ), और व्रण ( wounds ) में किया जाता है | 




Thursday, 22 November 2018

कुटजघन वटी की निर्माण विधि,सामान्य गुण और मात्रा kutajaghan vati

कुटजघन वटी की निर्माण विधि,सामान्य गुण और मात्रा -



कुटजघन वटी- 


घटक द्रव्य -

  • कुटज छाल - 48gm. 
  • काढ़ा बनाने के लिए जल -  768gm. 
  • अतिविष - 12gm . 

निर्माण विधि -  कुटज की छाल को साफ़ करके 768ml पानी में उबालें , जब जल का आठवां भाग अर्थात 96 ml रह जाये तो काढ़ा बनाने के लिए छानकर इसको फिर से धीमी आंच पर पकायें और कड़छी से कल्क को हिलाते रहें जब तक कल्क गाढ़ा नहीं हो जाता, इसके बाद इसको थाली में डालकर धूप में सुखाने के लिए रखें और अतिविष का चूर्ण मिलाकर इसकी 250 mg की गोली बनाकर सूखा लें और सूखने के बाद इसको कांच की शीशी में भरकर रख लें।  

मात्रा और अनुपान - 250mg  से 500mg या  2 से 4 गोली दिन में दो से तीन बार जल के साथ खाने को दें और बच्चों को एक गोली दिन में एक से दो बार भोजन के बाद खाने को दें | 

उपयोग -  कुटज घन वटी का प्रयोग अतिसार, ग्रहणी, कफ और पित्त दोषों का नाश करके के लिए किया जाता है | 


If You Have Any Questions In Your Mind, Please Do Not Hesitate. Feel Free To Contact Us

Tuesday, 20 November 2018

त्रिभुवनकीर्ति रस की निर्माण विधि,सामान्य गुण और मात्रा Tribhuvanakirti Ras

त्रिभुवनकीर्ति रस की निर्माण विधि,सामान्य गुण और मात्रा-


त्रिभुवनकीर्ति रस - 


घटक द्रव्य -

  • शुद्ध हिंगुल     = 10 ग्राम 
  • शुद्ध वत्सनाभ = 10 ग्राम 
  • सोंठ / शुण्ठी   = 10 ग्राम
  • पिप्पली          = 10 ग्राम
  • काली मिरच   = 10 ग्राम
  • शुद्ध सुहागा   = 10 ग्राम 
  • तुलसी स्वरस = 10 ग्राम 
  • अदरक रस   = 10 ग्राम
  • धतूरा रस      = 10 ग्राम भावना देने के लिए | 


निर्माण विधि -  ऊपर बताई सभी औषधि द्रव्यों का 10-10  ग्राम लेकर एक-एक करके अच्छी तरह मिला लें, इसके बाद इसको अच्छी तरह घोट कर इसका कल्क बना लें, इसका पेस्ट बनाने के लिए तुलसी का रस प्रयोग किया जाता है|  मर्दन करते हुए या घोटते हुए अगर यह सूखने लगे तो फिर तुलसी का रस डालकर अच्छी तरह से पीसें, ऐसा तीन बात दोहराएं | यही विधि धतूरा रस और अदरक रस का प्रयोग करते समय भी दोहरायें | जब कल्क हाथों की अँगुलियों से चिपकना बंद हो जाये तो इसकी निर्माण क्रिया को अंतिम रूप देना चाहिए, और कल्क की छोटी - छोटी गोली बना लेनी चाहिए | 

मात्रा -  60 - 125 mg. दिन में एक से दो बार भोजन के बाद | 

अनुपान - इसका प्रयोग शहद, अदरक रस, तुलसी रस, के साथ किया जाता है | 

सामान्य गुण -  त्रिभुवनकीर्ति रस का प्रयोग उष्णवीर्य, वातज्वर, कफज्वर, नवज्वर, पीनस, जुकाम, न्यूमोनिया, आदि में किया जाता है |  

If You Have Any Questions In Your Mind, Please Do Not Hesitate. Feel Free To Contact Us.


Sunday, 18 November 2018

मदनानन्द मोदक की निर्माण विधि, सामान्य गुण और मात्रा Madanaanand Modak

मदनानन्द मोदक की निर्माण विधि, सामान्य गुण और मात्रा 

घटक द्रव्य -

शुद्ध पारद   - 12 ग्राम 
शुद्ध गंधक  - 12 ग्राम 
लौह भस्म    - 12 ग्राम 
अभ्रक भस्म - 36 ग्राम
दालचीनी, तेजपत्र, छोटी इलायची, नागकेशर, कपूर, सेंधा नमक,  सोंठ, मरिच, पीपर, इन सबकी 3-3 ग्राम की मात्रा लें | 
आंवला, जावित्री, जायफल, जटामांसी, लौंग, जीरा, काला जीरा, मुलेठी, वच, कूठ, हल्दी, देवदारु, हिज्जल बीज, भुना सुहागा, भारंगी सोंठ, काकड़ासिंगी, तालीसपत्र, मुनक्का, चित्रकमूल छाल, दंतीमूल, बरियार, अतिबला, दालचीनी, धनिया, गजपीपर, कचूर, सुगन्धबाला, नागरमोथा, असगंध, विदारीकन्द, शतावर, मदार की जड़, केवांच बीज, गोखरू, विधारी बीज, भांग के बीज 
इन सबको 12-12 ग्राम की मात्रा में लिया जाता है | 

निर्माण विधि - सबसे पहले सभी रस भस्मों को खरल में डालकर अच्छी तरह से मिला लिया जाता है, उसके बाद सभी चूर्ण एक एक कर मिलाया जाता है, इसके बाद चूर्ण को  शतावर का स्वरस या कवाथ की भावना देकर घोटकर सुखा लेते है फिर इसमें 153 ग्राम सेमल की जड़ का चूर्ण और 306 ग्राम शुद्ध भांग का चूर्ण मिलाकर बकरी के दूध की भावना देकर अच्छी तरह पीसकर सूखा लें, उसके बाद दोगुनी चीनी 2 kg 142gm लेकर चीनी से चार गुना दूध = 8 kg 568 gm लेकर उसमें चीनी को मिलाकर धीमी आंच पर पकने दिया जाता है, जब दूध गाढ़ा हो जाये तो चूर्ण डालकर अच्छी तरह मिला लें | 
दालचीनी, तेजपत्र, छोटी इलायची, नागकेशर, कपूर, सेंधा नमक,सोंठ, मरिच, पीपर इन सबका 3-3 ग्राम चूर्ण लेकर अच्छी तरह मिला दें, ठंडा हो जाने पर इस पाक में एक किलो गोघृत और दो किलो शहद मिलाकर सुरक्षित रख लिया जाता है | 

मात्रा - 3 से 5 ग्राम की मात्रा में गौदूध के साथ सुबह शाम प्रयोग करें | 

उपयोग - यह अत्यंत वाजीकरण का प्रसिद्ध योग है, इसके सेवन से वीर्य वृद्धि होती है.



Friday, 16 November 2018

द्राक्षासव की निर्माण विधि सामान्य गुण और मात्रा Drakshasava

द्राक्षासव की निर्माण विधि सामान्य गुण और मात्रा 

द्राक्षासव के घटक द्रव्य - 

  • द्राक्षा ( सूखे अंगूर ) = 4.5 किलोग्राम
  • जल कषाय बनाने के लिए = 10 गुना 
  • शक़्कर / मिश्री = 4.8 kg 
  • धातकी पुष्प = 768 gm
  • जाती = 48 gm
  • लवंग = 48 gm
  • कंकोली = 48 gm
  • तेजपत्र =  48 gm
  • दालचीनी = 48 gm  
  • इलायची = 48 gm 
  • नागकेसर = 48 gm 
  • काली मिर्च = 48 gm 
  • चित्रक = 48 gm
  • चव्य = 48 gm 
  • पिप्पलीमूल = 48 gm 
  • निर्गुन्डी = 48 gm


निर्माण विधि - सबसे पहले सूखे अंगूर या द्राक्षा को कषाय बनाने के लिए 40 लीटर जल में उबालें और चौथा भाग / 10 लीटर रह जाने पर ठंडा होने के लिए रख दें , फिर उसमें शक़्कर / मिश्री और शहद अच्छी तरह से मिला ले और अच्छी तरह से छान लें , इसके बाद इसमें सारे प्रक्षेप द्रव्य मिलाकर बर्तन का मुख बंद करके एक महीने तक या तीन हफ़्तों तक साफ़ स्थान पर रख दें, फिर तीन हफ़्तों के बाद बर्तन का मुख खोलकर संधान को जांचने के बाद छानकर कांच की बोत्तल में भरकर सुरक्षित रख लिया जाता है


मात्रा -  12 - 24 ml या  20 ml भोजन के बाद  दिन में दो बार | 


उपयोग - द्राक्षासव का प्रयोग बवासीर, वात और पित्त रोगों में किया जाता है, हृदयरोग, अरुचि, सिरदर्द, अजीर्ण, कब्ज़ आदि में किया जाता है | 


Saturday, 7 October 2017

रसोन क्षीर पाक की निर्माण विधि और सामान्य गुण तथा मात्रा

रसोन क्षीर पाक  की निर्माण विधि और सामान्य गुण तथा मात्रा -  


रसोन क्षीर पाक   



घटक द्रव्य - 



लहसुन कली ( रसोन )  - 100 ग्राम 

गाय का दूध                - 1 लीटर 
जल                           - 250 मिलीलीटर ( एक गिलास ) 
शुद्ध घी                      - 50 ग्राम 
दालचीनी                    - 2 ग्राम 
लौंग                           - 2 ग्राम 
जायफल                     - 2 ग्राम 
केशर                         - 1 ग्राम 
शक़्कर                       - 50 ग्राम 


निर्माण विधि - सबसे पहले कड़ाई में एक लीटर दूध और एक गिलास पानी डालकर उबाल लें | उसके बाद दूध में लहसुन की कलियों को छीलकर बारीक काटकर मिला दें और तब तक इसको उबालें जब तक दूध गाढ़ा नहीं हो जाता | इसके बाद कड़ाई को आंच से उतार लें और मिक्सी में अच्छी तरह से पीसकर कड़ाई में घी डालकर धीमी आंच पर पाक करें | जब यह कल्क अच्छी तरह लाल हो जाये और घी को छोड़ दे तो आग से उतार कर रख लें फिर इसमें शक़्कर डालकर अच्छी तरह मिला लें | प्रक्षेप द्रव्य दालचीनी, लौंग, जायफल का बारीक पाउडर और  केशर को मिलाकर थाली में ठंडा होने के लिए फैला दें जम जाने के बाद इसको रोग के अनुसार खाया जाता है | 



सामान्य गुण - रसोन पाक आहार के रूप में वाजीकरण योग है और शरीर की सभी धातुओं को पुष्ट करता है | 



मात्रा - एक एक चम्मच मिश्री मिले हुए गर्म दूध के साथ दिन में दो बार 60 दिनों तक सेवन करना लाभकारी रहता है | 



उपयोग - रसोनक्षीर पाक का प्रयोग जोड़ों के दर्द, हिचकी, अपस्मार, उदररोग, पक्षाघात, हृदय रोग में किया जाता है | 



Friday, 6 October 2017

महारस - उपरस - साधारण रस - धातु - रतन

परिभाषा प्रकरण - ( रस शास्त्र )  - 


महारस - रस शास्त्र  में महारस की संख्या आठ मानी गयी है | जोकि इस प्रकार है


अभ्रक -      Mica
वैक्रान्त -     Tourmaline 
माक्षिक -     Pyrite 
विमल -       Iron Pyrite 
शिलाजीत -  Black Bitumen 
सस्यक  -     Copper Sulphate 
चपल -         Bismuth 
रसक -        Calamine or Zinc  

उपरस वर्ग  - उपरस की संख्या भी आठ मानी गयी है जोकि इस प्रकार है -

गन्धक -                   Sulphur 
गैरिक -                   Ochre
कासीस -                 Green Vitriol  
फिटकरी ( कांक्षी ) - Potash Alum 
हरताल -                 Orpiment 
मन:शिला -              Realgar  
अंजन -                   Collyrium 
कंकुष्ठ -                   Ruhbarb 

साधारण रस वर्ग - यह भी संख्या में आठ बताये गए है 

कम्पिल्लक -             Kamila 
गौरीपाषाण -             Arsenic  
नवसादर -                Ammonium Salt  
कपर्द ( कौड़ी ) -       Marine Shell 
अग्निजार ( अम्बर ) -  Ambergris 
गिरिसिंदूर -               Red Oxide of Mercury  
हिंगुल -                     Cinnabar 
मृददारश्रृंग  -             Litharge  

धातु वर्ग - धातु की संख्या सात बताई गयी है 

सुवर्ण -  Gold 
रजत -   Silver 
ताम्र -    Copper 
लौह -    Iron 
नाग -     Lead
वंग -      Tin
यशद -   Zinc 

रतन वर्ग - रतन की संख्या नो बताई गयी है - 

माणिक्य -           Ruby 
मुक्ता ( मोती ) -  Pearl
प्रवाल ( मूंगा ) -  Coral
ताक्षर्य ( पन्ना ) -  Emerald
पुखराज -           Topaz
भिदुर ( हीरा ) -  Diamond
नीलम -             Sapphire
गोमेद -             Zircon
वैदूर्य -              Cat's eye


Thursday, 5 October 2017

गन्धकाद्य मलहर ( गन्धक मलहर )की निर्माण विधि और सामान्य गुण तथा मात्रा -

गन्धक मलहर की निर्माण विधि और सामान्य गुण तथा मात्रा - 


गन्धकाद्य  मलहर 




घटक द्रव्य



सिक्थ तैल - तिल तैल - मधु मक्खी मोम = 72 ग्राम 

शुद्ध गन्धक - 6 ग्राम 
गिरी सिन्दूर - 6 ग्राम 
टंकण भस्म - 2 ग्राम 
घनसारा ( कपूर ) - 2 ग्राम  


निर्माण विधि - सबसे पहले सिक्थ तेल, तिल तेल और मोम सबको समभाग लेकर कड़ाई में गर्म करें | जब अच्छी तरह से घुल जाये तो आंच से उतार दें | थोड़ा ठंडा होने पर इसमें उपरोक्त औषधि द्रव्यों को डालकर अच्छी तरह मिलाकर कांच की बोतल में सुरक्षित रख लें | 



उपयोग - गन्धकाद्य मलहर आयुर्वेदिक औषधि है जिसका प्रयोग त्वचा के रोगों में ( Skin Disease ) किया जाता है | जैसे - खुजली, फंगल संक्रमण , दद्रु आदि पर इस मलहम का प्रयोग एक से दो महीने तक चिकित्सक की सलाह से करना चाहिए | पित्त और कफ दोष  युक्त व्रणों में मुख्यता इसका प्रयोग किया जाता है | 


Thursday, 28 September 2017

रस शब्द निरुक्ति | ग्राह्य पारद के लक्षण | पारद का सामान्य शोधन | पारद मूर्च्छना का उदाहरण सहित ज्ञान |

रस  शब्द निरुक्ति | ग्राह्य पारद के लक्षण | पारद का सामान्य शोधन | पारद मूर्च्छना का उदाहरण सहित ज्ञान | 

रसशास्त्र में रस शब्द पारद के लिए प्रयोग किया गया है | सम्पूर्ण शास्त्र  का मूल द्रव्य पारद को माना जाता है दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते है कि पारद को ही आधार बनाकर रस शास्त्र की रचना की गयी है | 


पारद शब्द की निरुक्ति - 

रस शास्त्र में रस शब्द की निम्नलिखित निरुक्ति दी गयी है - 


पारद सभी धातुओं को खा जाता है इसलिए इसे रस कहते है | 
पारद रस वर्ग और उपरसों का राजा होने के कारण रस कहलाता है | 
पारद द्रव रूप होने के कारण रस कहलाता है | 
अभ्रक आदि रसों उपरसों और स्वर्ण आदि धातुओं को खाने के कारण इसको रस कहते है | 
इस पारद को खाने से रोग, बुढ़ापा और मृत्यु का नाश होता है इसलिए इसे रस कहते है | शिव पार्वती से कहते है कि यह पारद मेरे शरीर का रस है अत: इसको रस कहते है | 


पारद का ग्राह्य स्वरूप -

देखने पर जो अंदर से नीलाभ ( नीले रंग ) और बाहर से शुभ्र (उज्ज्वल ) वर्ण का हो साथ ही दोपहर में  सूर्य के समान चमकीला हो उसे शुद्ध पारद समझना चाहिए , यही इसका ग्राह्य स्वरूप ( समझने के योग्य ) है औषधि के निर्माण और संस्कार कर्म में इसे ही उपयोग में लाना चाहिए 
जो पारद देखने पर धुँए के जैसे रंग का पीले रंग में या  विचित्र रंग वाला हो  तो इस पारद को रसकर्म हेतु उपयोग में नहीं लेना चाहिए | 


 पारद का शोधन -  

पारद खानों से प्राप्त होता है भूमि में  नाग , वंग , चपल आदि के सम्पर्क में आने से दोषयुक्त पारद विष के समान हो जाता है  ऐसे पारद को औषधि कार्य हेतु उपयोग में नहीं लाना चाहिए क्यूंकि यह  शरीर में अनेकों विकार पैदा करने वाला होता है अशुद्ध पारद के सेवन से मृत्यु तक होने की सम्भावना रहती है | इसलिए औषधि कार्य एवं संस्कार से पहले शोधन बहुत ज़रूरी है | पारद का शोधन दो प्रकार से बतलाया है -


(1) सामान्य शोधन  (2) विशेष शोधन 


दो प्रकार के शोधन के बारे में लिखा गया है कि सामान्य शोधन व्याधि के प्रतिकार ( कष्ट-निवारण )के लिए और विशेष शोधन रसायन गुणों की प्राप्ति के लिए किया जाता है |

(1) सामान्य शोधन -  आचार्य सदानंद अनुसार रोग निवारण एवं रसौषधियों में उपयोग करने के लिए पारद का सामान्य शोधन कर लेना  भी सबसे अच्छा है | 

1 ) सर्वप्रथम  लौह खरल में समान भाग अशुद्ध पारद एवं सुधराज ( चूना ) डालकर तीन दिन तक मर्दन करते हैं  उसके बाद दोहरे सूती कपड़े से छान कर  प्राप्त पारद को दोबारा खरल में डालकर समान भाग छिलका रहित लहसुन और लहसुन के आधा भाग सेंधव लवण मिलाकर काला होने  तक मर्दन ( पीसना ) करना चाहिए | उसके बाद इसको गर्म पानी से धोकर शुद्ध पारद इक्क्ठा किया जाता है | 

2 ) दूसरी विधि में आचार्य माधव ने एकमात्र द्रव्य लहसुन से ही पारद का शुद्ध होना कहा है | गर्म लोहे के खरल में छिलका रहित लहसुन और सैन्धव लवण के साथ सात दिन मर्दनकर गर्म जल से धोकर शुद्ध पारद प्राप्त करते है | 
पारद का शोधन पत्थर या लोहे के खरल में ही करना चाहिए क्यूंकि पारद दूसरी धातुओं जैसे तांबा, चांदी, पीतल आदि को भस्म कर देता है | 


पारद मूर्च्छना का उदाहरण सहित ज्ञान

पारद में अनेक प्रकार की क्रियाओं द्वारा एक या अनेक द्रव्यों के संयोग करके व्याधिनाशक ( रोगनाशक ) शक्ति पैदा करना पारद मूर्च्छना कहलाता है | पारद मूर्च्छना दो प्रकार से की जाती है | 


1) सगंध मूर्च्छना - यदि पारद में गंधक मिलाकर मूर्च्छना की जाये तो उसे सगंध मूर्च्छना कहते है | जैसे - रससिंदूर , रस पर्पटी आदि | 

2) निर्गन्ध मूर्च्छना - यदि पारद में बिना गंधक मिलाये मूर्च्छना की जाये तो इसे पारद की निर्गन्ध मूर्च्छना कहते है | जैसे मुग्धरस , रसकपूर आदि | 


सगंध मूर्च्छना के आगे तीन और प्रकार होते है | 



1) निर्धूम सगंध मूर्च्छना

पारद और गंधक को खरल में खूब मर्दन करने पर कृष्ण वर्ण का चूर्ण मिलता है उसे कज्जली कहते है यह काम बिना आग के संयोग से किया जाता है जिसके कारण इसमें से धुऐं की उत्पत्ति नहीं होती है इसलिए इसे निर्धूम सगंध मूर्च्छना कहते है | 



2) अंतर्धूम और बहिर्धूम सगंध मूर्च्छना 

पारद को गंधक की कज्जली बनाकर एक काँच की शीशी में डालकर बालुका यंत्र में रखकर पकया जाता है | इस तरह से रस सिंदूर का निर्माण होता है | अगर शीशी का मुँह शुरू से बंद किया जाये तो उसे अंतर्धूम सगंध मूर्च्छना  कहते है | 
और यदि शीशी का मुँह कुछ समय बाद बंद किया जाये तो उसे बहिर्धूम सगंध  मूर्च्छना कहते है | 




Sunday, 3 September 2017

परिभाषा प्रकरण-Definition.

Que.2- परिभाषा प्रकरण - 


1.) भस्म परीक्षा - निर्मित भस्मों का प्रयोग करने से पहले उसका ठीक प्रकार से निर्माण हुआ है या नहीं | यह परीक्षण करना आवश्यक है | यदि कच्ची भस्म का सेवन किया जायेगा तो शरीर में विकार पैदा होते है | प्राचीन काल में आचार्यों द्वारा भस्म निर्माण संबन्धी  परीक्षण विधियां अपनायी जाती थी जो वर्तमान में भी प्रचलित है जैसे - 

2.) रेखापूर्ण परीक्षा - सम्यक निर्मित भस्म को अंगूठा और तर्जनी से मला जाये उसके बाद अंगुलियां साफ़ करने पर भी भस्म के अंश रेखाओं में लगे रहे तब उसे ' मृतलोह ' या रेखापूर्ण भस्म के नाम से जाना जाता है |

3.) वारित परीक्षा - सम्यक मारित धातु को यदि जल से भरी कटोरी में डाला जाये तब यदि वह भस्म जल की सतह पर तैरती रहे, तले में नहीं बैठे उसे ' वारित भस्म ' कहते हैं | 

4.) अपुनर्भव परीक्षा - गुंजा, शहद, घी, टंकण एवं गुग्गुलु को निर्मित धातु भस्म के साथ मिश्रित कर मूषा में रखकर तेज़ आंच देने के बाद भी किसी प्रकार का परिवर्तन दिखाई न दे तब उस भस्म को ' अपुनर्भव कहा जाता है |  

5.) निरुत्थिकरण या निरुत्थि परीक्षा - मारित लोह या धातु भस्मों को चांदी के टुकड़े के साथ मिलाकर तीव्र अग्नि दी जाये, अगर धातुभस्म चांदी के साथ मिश्रित न हो तब उसे निरुत्थ भस्म कहते हैं | 

6.) अभ्रक भस्म परीक्षा - धातु भस्म को सूर्य के प्रकाश में रखने पर धात्वीय चमक दिखाई न दे तब उसे  निशचन्द्र भस्म समझना चाहिए | अभ्रक भस्म की परीक्षा इसी प्रकार से की जाती है | 

7.) ताम्र भस्म परीक्षा - कच्ची ताम्र भस्म पर निम्बू आदि किसी अम्ल द्रव को गिराया जाये तो उसका वर्ण तुत्थ के समान दिखाई देने लगता है | यदि परिवर्तन न हो तब उसे सुपकव ताम्रभस्म माना जाता है | इस परीक्षा को अम्ल परीक्षा  भी कहते है | 

8.) पंचगव्यगाय के दूध, घी, दही, मूत्र एवं गोबर को सम्म्लित रूप से पंचगव्य कहा जाता है | 

9.) द्रावकगण -  गुंजा, शहद, गुड़, टंकण, एवं गुग्गुलु |  

10.) भावना किसी धातु आदि औषधि चूर्ण को खरल में डालकर जल, कवाथ,या स्वरस आदि द्रव पदार्थों में मर्दन कर सूखा लेने को ' भावना ' कहते है |

11.) मारण -   अभ्रक, माक्षिक, ताम्र और लौह धातु आदि खनिज द्रव्यों को वनस्पतियों के स्वरस आदि से मर्दन कर अग्नि के संयोग के द्वारा भस्म करने की क्रिया को ' मारण '  कहते है | 
   
12.) शोधन -   पारद, अभ्रक, गंधक आदि खनिज द्रव्यों को शोधन द्रव्यों " औषधि स्वरस, अर्क, गोमूत्र, आदि के साथ खरल में मर्दन, स्वेदन, निर्वाप आदि कर्म करने को शोधन कहा जाता है | 

13.) कज्जली शुद्ध पारद को शुद्ध गन्धक आदि उपरस  द्रव्यों के साथ अथवा लौह आदि धातुओं के साथ बिना द्रवयोग के अच्छी तरह मर्दन करके चिकना तथा काजल के सामान काला कर लिया जाये तो उसे कज्जली कहते है |

14.) पंचामृत गौ-दूध, गौघृत, दही, शहद, शर्करा .





15.) लवण पंचक -  सैंधव लवण, विडं लवण, सौवर्चल लवण, रोमक लवण, साम्रुद लवण, 





Friday, 1 September 2017

आयुर्वेद में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं-

आयुर्वेद में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं 


1.Que: पंचगव्य किसे  कहते है 

Ans :गाय के दूध, घी, दही, मूत्र एवं गोबर को सम्म्लित रूप से पंचगव्य कहा जाता है | 

2.Que : द्रावकगण 

Ans :  गुंजा, शहद, गुड़, टंकण, एवं गुग्गुलु |  

3.Que : भावना
  
Ans  : किसी धातु आदि औषधि चूर्ण को खरल में डालकर जल, कवाथ,या स्वरस आदि द्रव पदार्थों में मर्दन कर सूखा लेने को ' भावना ' कहते है |

4.Que : मारण 

Ans  : अभ्रक, माक्षिक, ताम्र और लौह धातु आदि खनिज द्रव्यों को वनस्पतियों के स्वरस आदि से मर्दन कर अग्नि के संयोग के द्वारा भस्म करने की क्रिया को ' मारण '  कहते है | 
   
5.Que : शोधन 

Ans : पारद, अभ्रक, गंधक आदि खनिज द्रव्यों को शोधन द्रव्यों " औषधि स्वरस, अर्क, गोमूत्र, आदि के साथ खरल में मर्दन, स्वेदन, निर्वाप आदि कर्म करने को शोधन कहा जाता है | 

6.Que : कज्जली 

Ans : शुद्ध पारद को शुद्ध गन्धक आदि उपरस  द्रव्यों के साथ अथवा लौह आदि धातुओं के साथ बिना द्रवयोग के अच्छी तरह मर्दन करके चिकना तथा काजल के सामान काला कर लिया जाये तो उसे कज्जली कहते है |

Thursday, 31 August 2017

आयुर्वेद में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं

आयुर्वेद में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं


1.Que:  पंचामृत किसे कहते हैं ?



Ans:  गौ-दूध, गौघृत, दही, शहद, शर्करा .

2.Que:  लांवात्रक किसे कहा जाता हैं ?

Ans:  सैंधव लवण,सौवर्चल लवण, विंड लवण .

3.Que:  लवण पंचक किसे कहते हैं ?

Ans:  सैंधव लवण, विडं लवण, सौवर्चल लवण, रोमक लवण, साम्रुद लवण,

4.Que:  आयुर्वेद में त्रिफल किसे कहा जाता है ?

Ans:  हरड़, बहेड़ा, आमला .

5.Que: आयुर्वेद में मधुत्रय किसे कहा गया है ?

Ans:  घी, गुड़, शहद.