Que.2- परिभाषा प्रकरण -
1.) भस्म परीक्षा - निर्मित भस्मों का प्रयोग करने से पहले उसका ठीक प्रकार से निर्माण हुआ है या नहीं | यह परीक्षण करना आवश्यक है | यदि कच्ची भस्म का सेवन किया जायेगा तो शरीर में विकार पैदा होते है | प्राचीन काल में आचार्यों द्वारा भस्म निर्माण संबन्धी परीक्षण विधियां अपनायी जाती थी जो वर्तमान में भी प्रचलित है जैसे -
2.) रेखापूर्ण परीक्षा - सम्यक निर्मित भस्म को अंगूठा और तर्जनी से मला जाये उसके बाद अंगुलियां साफ़ करने पर भी भस्म के अंश रेखाओं में लगे रहे तब उसे ' मृतलोह ' या रेखापूर्ण भस्म के नाम से जाना जाता है |
3.) वारित परीक्षा - सम्यक मारित धातु को यदि जल से भरी कटोरी में डाला जाये तब यदि वह भस्म जल की सतह पर तैरती रहे, तले में नहीं बैठे उसे ' वारित भस्म ' कहते हैं |
4.) अपुनर्भव परीक्षा - गुंजा, शहद, घी, टंकण एवं गुग्गुलु को निर्मित धातु भस्म के साथ मिश्रित कर मूषा में रखकर तेज़ आंच देने के बाद भी किसी प्रकार का परिवर्तन दिखाई न दे तब उस भस्म को ' अपुनर्भव कहा जाता है |
5.) निरुत्थिकरण या निरुत्थि परीक्षा - मारित लोह या धातु भस्मों को चांदी के टुकड़े के साथ मिलाकर तीव्र अग्नि दी जाये, अगर धातुभस्म चांदी के साथ मिश्रित न हो तब उसे निरुत्थ भस्म कहते हैं |
6.) अभ्रक भस्म परीक्षा - धातु भस्म को सूर्य के प्रकाश में रखने पर धात्वीय चमक दिखाई न दे तब उसे निशचन्द्र भस्म समझना चाहिए | अभ्रक भस्म की परीक्षा इसी प्रकार से की जाती है |
7.) ताम्र भस्म परीक्षा - कच्ची ताम्र भस्म पर निम्बू आदि किसी अम्ल द्रव को गिराया जाये तो उसका वर्ण तुत्थ के समान दिखाई देने लगता है | यदि परिवर्तन न हो तब उसे सुपकव ताम्रभस्म माना जाता है | इस परीक्षा को अम्ल परीक्षा भी कहते है |
8.) पंचगव्य - गाय के दूध, घी, दही, मूत्र एवं गोबर को सम्म्लित रूप से पंचगव्य कहा जाता है |
2.) रेखापूर्ण परीक्षा - सम्यक निर्मित भस्म को अंगूठा और तर्जनी से मला जाये उसके बाद अंगुलियां साफ़ करने पर भी भस्म के अंश रेखाओं में लगे रहे तब उसे ' मृतलोह ' या रेखापूर्ण भस्म के नाम से जाना जाता है |
3.) वारित परीक्षा - सम्यक मारित धातु को यदि जल से भरी कटोरी में डाला जाये तब यदि वह भस्म जल की सतह पर तैरती रहे, तले में नहीं बैठे उसे ' वारित भस्म ' कहते हैं |
4.) अपुनर्भव परीक्षा - गुंजा, शहद, घी, टंकण एवं गुग्गुलु को निर्मित धातु भस्म के साथ मिश्रित कर मूषा में रखकर तेज़ आंच देने के बाद भी किसी प्रकार का परिवर्तन दिखाई न दे तब उस भस्म को ' अपुनर्भव कहा जाता है |
5.) निरुत्थिकरण या निरुत्थि परीक्षा - मारित लोह या धातु भस्मों को चांदी के टुकड़े के साथ मिलाकर तीव्र अग्नि दी जाये, अगर धातुभस्म चांदी के साथ मिश्रित न हो तब उसे निरुत्थ भस्म कहते हैं |
6.) अभ्रक भस्म परीक्षा - धातु भस्म को सूर्य के प्रकाश में रखने पर धात्वीय चमक दिखाई न दे तब उसे निशचन्द्र भस्म समझना चाहिए | अभ्रक भस्म की परीक्षा इसी प्रकार से की जाती है |
7.) ताम्र भस्म परीक्षा - कच्ची ताम्र भस्म पर निम्बू आदि किसी अम्ल द्रव को गिराया जाये तो उसका वर्ण तुत्थ के समान दिखाई देने लगता है | यदि परिवर्तन न हो तब उसे सुपकव ताम्रभस्म माना जाता है | इस परीक्षा को अम्ल परीक्षा भी कहते है |
8.) पंचगव्य - गाय के दूध, घी, दही, मूत्र एवं गोबर को सम्म्लित रूप से पंचगव्य कहा जाता है |
9.) द्रावकगण - गुंजा, शहद, गुड़, टंकण, एवं गुग्गुलु |
10.) भावना - किसी धातु आदि औषधि चूर्ण को खरल में डालकर जल, कवाथ,या स्वरस आदि द्रव पदार्थों में मर्दन कर सूखा लेने को ' भावना ' कहते है |
11.) मारण - अभ्रक, माक्षिक, ताम्र और लौह धातु आदि खनिज द्रव्यों को वनस्पतियों के स्वरस आदि से मर्दन कर अग्नि के संयोग के द्वारा भस्म करने की क्रिया को ' मारण ' कहते है |
12.) शोधन - पारद, अभ्रक, गंधक आदि खनिज द्रव्यों को शोधन द्रव्यों " औषधि स्वरस, अर्क, गोमूत्र, आदि के साथ खरल में मर्दन, स्वेदन, निर्वाप आदि कर्म करने को शोधन कहा जाता है |
13.) कज्जली - शुद्ध पारद को शुद्ध गन्धक आदि उपरस द्रव्यों के साथ अथवा लौह आदि धातुओं के साथ बिना द्रवयोग के अच्छी तरह मर्दन करके चिकना तथा काजल के सामान काला कर लिया जाये तो उसे कज्जली कहते है |
14.) पंचामृत - गौ-दूध, गौघृत, दही, शहद, शर्करा .
15.) लवण पंचक - सैंधव लवण, विडं लवण, सौवर्चल लवण, रोमक लवण, साम्रुद लवण,
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