Thursday, 28 September 2017

रस शब्द निरुक्ति | ग्राह्य पारद के लक्षण | पारद का सामान्य शोधन | पारद मूर्च्छना का उदाहरण सहित ज्ञान |

रस  शब्द निरुक्ति | ग्राह्य पारद के लक्षण | पारद का सामान्य शोधन | पारद मूर्च्छना का उदाहरण सहित ज्ञान | 

रसशास्त्र में रस शब्द पारद के लिए प्रयोग किया गया है | सम्पूर्ण शास्त्र  का मूल द्रव्य पारद को माना जाता है दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते है कि पारद को ही आधार बनाकर रस शास्त्र की रचना की गयी है | 


पारद शब्द की निरुक्ति - 

रस शास्त्र में रस शब्द की निम्नलिखित निरुक्ति दी गयी है - 


पारद सभी धातुओं को खा जाता है इसलिए इसे रस कहते है | 
पारद रस वर्ग और उपरसों का राजा होने के कारण रस कहलाता है | 
पारद द्रव रूप होने के कारण रस कहलाता है | 
अभ्रक आदि रसों उपरसों और स्वर्ण आदि धातुओं को खाने के कारण इसको रस कहते है | 
इस पारद को खाने से रोग, बुढ़ापा और मृत्यु का नाश होता है इसलिए इसे रस कहते है | शिव पार्वती से कहते है कि यह पारद मेरे शरीर का रस है अत: इसको रस कहते है | 


पारद का ग्राह्य स्वरूप -

देखने पर जो अंदर से नीलाभ ( नीले रंग ) और बाहर से शुभ्र (उज्ज्वल ) वर्ण का हो साथ ही दोपहर में  सूर्य के समान चमकीला हो उसे शुद्ध पारद समझना चाहिए , यही इसका ग्राह्य स्वरूप ( समझने के योग्य ) है औषधि के निर्माण और संस्कार कर्म में इसे ही उपयोग में लाना चाहिए 
जो पारद देखने पर धुँए के जैसे रंग का पीले रंग में या  विचित्र रंग वाला हो  तो इस पारद को रसकर्म हेतु उपयोग में नहीं लेना चाहिए | 


 पारद का शोधन -  

पारद खानों से प्राप्त होता है भूमि में  नाग , वंग , चपल आदि के सम्पर्क में आने से दोषयुक्त पारद विष के समान हो जाता है  ऐसे पारद को औषधि कार्य हेतु उपयोग में नहीं लाना चाहिए क्यूंकि यह  शरीर में अनेकों विकार पैदा करने वाला होता है अशुद्ध पारद के सेवन से मृत्यु तक होने की सम्भावना रहती है | इसलिए औषधि कार्य एवं संस्कार से पहले शोधन बहुत ज़रूरी है | पारद का शोधन दो प्रकार से बतलाया है -


(1) सामान्य शोधन  (2) विशेष शोधन 


दो प्रकार के शोधन के बारे में लिखा गया है कि सामान्य शोधन व्याधि के प्रतिकार ( कष्ट-निवारण )के लिए और विशेष शोधन रसायन गुणों की प्राप्ति के लिए किया जाता है |

(1) सामान्य शोधन -  आचार्य सदानंद अनुसार रोग निवारण एवं रसौषधियों में उपयोग करने के लिए पारद का सामान्य शोधन कर लेना  भी सबसे अच्छा है | 

1 ) सर्वप्रथम  लौह खरल में समान भाग अशुद्ध पारद एवं सुधराज ( चूना ) डालकर तीन दिन तक मर्दन करते हैं  उसके बाद दोहरे सूती कपड़े से छान कर  प्राप्त पारद को दोबारा खरल में डालकर समान भाग छिलका रहित लहसुन और लहसुन के आधा भाग सेंधव लवण मिलाकर काला होने  तक मर्दन ( पीसना ) करना चाहिए | उसके बाद इसको गर्म पानी से धोकर शुद्ध पारद इक्क्ठा किया जाता है | 

2 ) दूसरी विधि में आचार्य माधव ने एकमात्र द्रव्य लहसुन से ही पारद का शुद्ध होना कहा है | गर्म लोहे के खरल में छिलका रहित लहसुन और सैन्धव लवण के साथ सात दिन मर्दनकर गर्म जल से धोकर शुद्ध पारद प्राप्त करते है | 
पारद का शोधन पत्थर या लोहे के खरल में ही करना चाहिए क्यूंकि पारद दूसरी धातुओं जैसे तांबा, चांदी, पीतल आदि को भस्म कर देता है | 


पारद मूर्च्छना का उदाहरण सहित ज्ञान

पारद में अनेक प्रकार की क्रियाओं द्वारा एक या अनेक द्रव्यों के संयोग करके व्याधिनाशक ( रोगनाशक ) शक्ति पैदा करना पारद मूर्च्छना कहलाता है | पारद मूर्च्छना दो प्रकार से की जाती है | 


1) सगंध मूर्च्छना - यदि पारद में गंधक मिलाकर मूर्च्छना की जाये तो उसे सगंध मूर्च्छना कहते है | जैसे - रससिंदूर , रस पर्पटी आदि | 

2) निर्गन्ध मूर्च्छना - यदि पारद में बिना गंधक मिलाये मूर्च्छना की जाये तो इसे पारद की निर्गन्ध मूर्च्छना कहते है | जैसे मुग्धरस , रसकपूर आदि | 


सगंध मूर्च्छना के आगे तीन और प्रकार होते है | 



1) निर्धूम सगंध मूर्च्छना

पारद और गंधक को खरल में खूब मर्दन करने पर कृष्ण वर्ण का चूर्ण मिलता है उसे कज्जली कहते है यह काम बिना आग के संयोग से किया जाता है जिसके कारण इसमें से धुऐं की उत्पत्ति नहीं होती है इसलिए इसे निर्धूम सगंध मूर्च्छना कहते है | 



2) अंतर्धूम और बहिर्धूम सगंध मूर्च्छना 

पारद को गंधक की कज्जली बनाकर एक काँच की शीशी में डालकर बालुका यंत्र में रखकर पकया जाता है | इस तरह से रस सिंदूर का निर्माण होता है | अगर शीशी का मुँह शुरू से बंद किया जाये तो उसे अंतर्धूम सगंध मूर्च्छना  कहते है | 
और यदि शीशी का मुँह कुछ समय बाद बंद किया जाये तो उसे बहिर्धूम सगंध  मूर्च्छना कहते है | 




2 comments:

  1. To making gold which type of para is the best and tell me the nest way to make gold or paras patthar.

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