Friday, 13 January 2017

विष के भेद - स्थावर, जांगम विष एवं उनके अधिष्ठान, विष के वेगों का वर्णन ।

                        SUBJECT - AGAD TANTRA

TOPIC-2 

विष के भेद - स्थावर, जांगम विष एवं उनके अधिष्ठान, विष के वेगों का वर्णन।

विष की परिभाषा - जो द्रव्य प्राणी के मनोदैहिक तंत्र के संपर्क में आकर उसके शरीर में प्रवेश करके विषाद ( दुःख ) पैदा करता है या उसके प्राणों का नाश करता है उसको विष कहते है । 

विष के भेद - आयुर्वेद में विष को दो भागों में बांटा गया है । 
                     1) अकृत्रिम या स्वभाविक विष 
                     2) कृत्रिम या संयोगज विष 

1) अकृत्रिम विष - जो विष अपने मूलरूप में ही पाये जाते है उन्हें अकृत्रिम विष कहते है । यह दो प्रकार के होते है । 
a) स्थावर विष 
b) जांगम विष

a) स्थावर विष - जो स्थावर रूप में स्थावर वस्तुओं में पाया जाता है। उसे स्थावर विष कहा जाता है। इसके आगे दो और भेद है ।  
1) वानस्पतिक विष - जो विष हमें पेड़ पौधों से प्राप्त होता है उसको वानस्पतिक विष कहते है । जैसे - वत्सनाभ, कुचला, भांग इत्यादि । 
2 ) खनिज या धातुज विष - जो विष खनिज और धातुओं से मिलते है उन्हें खनिज या धातुज विष कहते है। जैसे - पारा, वंग आदि । 

b) जांगम विष - जो विष हमें जीव जन्तुओं से प्राप्त होता है उसे जांगम विष कहते है । जैसे - सांप, बिच्छु, अलर्क ( कुत्ता ) आदि ।

2) कृत्रिम या संयोगज विष - जो विष दो या दो से अधिक द्रव्यों के भौतिक या रसायनिक संगठन से मिलकर बनते है उसे कृत्रिम विष कहते है । यह भी दो प्रकार के होते है । 
(a)  गर विष- एक से अधिक द्रव्यों के संयोग से बने हुए विष को गर विष कहते है । जैसे मछली का मांस और दूध का संयोग, मधु और घी की समान मात्रा विष के समान है ।
(b)  दूषी विष- विषयुक्त द्रव्य शरीर में पड़ा रहकर धीरे धीरे शरीर की धातुओं विशेषकर रक्त ( blood) को दूषित करके मृत्यु  कर देते है । उसे दूषी विष कहते है  
                                
                                                         विष 
                                ______________!_____________
                                !                                                      ! 
                      अकृत्रिम विष                                   कृत्रिम विष 
             ________!________                       ________!_______ 
            !                                !                      !                              !      
             स्थावर विष        जांगम विष            गर विष                 दूषी विष
     ______!______ 
       !                        !  
वानस्पतिक      खनिज ,धातुज विष   
                   
                                   स्थावर विष के अधिष्ठान 

स्थावर विष के अधिष्ठान - स्थावर द्रव्यों में पाये जाने वाले विष को स्थावर विष कहते है । और स्थावर द्रव्यों के जिन भागों में विष पाया जाता है उनको विष का अधिष्ठान माना गया है । स्थावर विष के 10 अधिष्ठान माने गये है। 
1) मूल विष - जिन वनस्पतियों की जड़ या मूल में विष होता है उसे मूल विष कहा जाता है। जैसे - कनेर , गूंजा, सुगन्ध, विजया आदि। 
2) पत्र विष - जिन पौधों के पत्तों में विष पाया जाता है उसको पत्र विष कहते है। जैसे- विषपत्रिका, लम्बा, वरदारू, करम्भ, महाकरम्भ आदि । 
3) फल विष - जिन वृक्षो के फलों में विष होता है उसको फल विष कहते है। जैसे- वेणुका, करम्भ, चर्मरी, सरपाक आदि। 
4) पुष्प विष - कुछ पौधों के फूलों में विष होता है । उसे पुष्प विष कहा जाता है । जैसे - वेत्र, कादम्ब, करम्भ, महाकरम्भ । 
5) त्वक, सार, निर्यास विष - जिन पौधों की शाखाओं के रस में गोंद में विष पाया जाता है उनको त्वक,सार,निर्यास विष कहते है । जैसे - करघाट, करम्भ, नन्दन, नाराचक, कर्तरी आदि। 
6) क्षीर विष - कई पेड़ पौधों से दूध निकलता है जो विष वाला ( ज़हरीला) होता है । उसे क्षीर विष कहते है । जैसे - स्नुही, जलक्षीरी, आक आदि । 
7) धातु विष - कुछ धातुयें भी विषैली होती है जिनको खाने से प्राणी की मृत्यु हो जाती है । जैसे - संखियाँ, हरताल, फेनाश्म । 
8) कन्द विष - कुछ कन्द ( घास ) भी विष वाले होते है उनको खाने से मनुष्य तथा पशुओं की मृत्यु हो जाती है । जैसे - कालकूट, वत्सनाभ, सर्षप, पालक, वैराटक आदि। 
     
                                  जांगम विष के अधिष्ठान
                               
जांगम विष के अधिष्ठान - जंगम प्राणियों में पाये जाने वाले विष को जंगम विष कहते है । सांप, कीट, चूहा, कुत्ता, छिपकली, मेंढक आदि दांतों वाले प्राणी है । इनकी दाढों से पैदा होने वाले विष को जांगम विष कहते है। इसके 16 अधिष्ठान होते है । (1) दृष्टि ( नज़र ), 2) निःश्वास , 3) नाख़ुन, 4) दाँत , 5) मूत्र , 6) पुरीष , 7) शुक्र , 8) लालास्राव , 9) आर्तव , 10) मुख , 11) संदंश (डंक ), 12) विशर्धित, 13) तुण्ड अस्थि , 14) पित्त , 15) शूक , 16) शव  

                           विष के वेगों का वर्णन 

विष के वेगों का वर्णन-  आचार्य सुश्रुत ने विष के 7 वेग तथा चरक ने 8 वेग बताये है। प्राणियों में विष के वेग तथा लक्ष्ण निम्नलिखित अनुसार बताये गये है । 
1) प्रथम वेग में रस धातु की दुष्टि होने के कारण प्यास, मोह लगती है। दांत खट्टे हो जाते है। मुख से लालास्राव होता है । वमन, सुस्ती आदि लक्ष्ण पैदा होते है। 
2) दूसरे वेग में विष रक्त धातु को दूषित करके शरीर का रंग खराब करता है। सिरदर्द , चक्कर आना, कंपकंपी, बेहोशी, जृम्भा आदि रोग होते है। 
3) तीसरे वेग में विष मांस धातु के दुष्ट होने से शरीर पर गोल गोल चकत्ते पड़ जाते है । खुजली, सूजन, कोठ, आदि लक्षण प्रकट होते है।  
4) चौथे वेग में वाट आदि धातुओं के दुष्ट होने से वमन , दाह , अंगों में दर्द, मूर्च्छा होती है। 
5) पांचवे वेग में दृष्टि मंडलों के दूषित होने से वस्तु नीले रंग की दिखाई देती है । और आँखों के आगे अँधेरा छा जाता है। 
6) छठे वेग में हिचकियाँ होने लगती है । 
7) सातवें वेग में कन्धा लटक जाता है। 
8) आठवें वेग में श्वासावरोध होने से मृत्यु हो जाती है। 

पशुओं में विष के वेग -  पशुओं में विष के चार वेग होते है । पहले वेग में शरीर में पीड़ा होती है । चक्कर आते है । दूसरे वेग में पशु काँपने लगता है\ तीसरे वेग में भोजन के प्रति उदासीन तथा निष्क्रिय हो जाता है। और चौथे वेग में श्वास ( साँस ) की गति में वृद्धि होने से मृत्यु हो जाती है। 

पक्षियों में विष के वेग -  पक्षियों में विष के तीन वेग होते है। पहले वेग में पक्षी को दाह होने लगता है। दूसरे वेग में चक्कर आते है। तीसरे वेग में पक्षी के सारे शरीर के अंग ढीले पड़ जाते है और उसकी मृत्यु  जाती है। 

1 comment:

  1. Thanks for posting such knowledge all my doubts are now cleared

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