Wednesday 30 November 2016

स्नेह कल्पना, निर्माण विधि का ज्ञान । स्नेहसिद्धि के लक्षण एवं सामान्य मात्रा

स्नेह कल्पना, निर्माण विधि का ज्ञान। स्नेहसिद्धि के लक्षण एवं सामान्य मात्रा । 


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 शरीर में वात दोष के कारण व्याधि उत्पन्न होती है। इसलिए वात दोष की शांति के लिए स्नेह कल्पना या स्नेह पाक उत्तम मानी गयी है। चिकित्सा में प्रयोग होने वाले घृत - तैल आदि स्नेह मूर्च्छना के बाद कल्क-कवाथ, जल, दुग्ध आदि द्रवो के साथ मिलकर किसी पात्र में डालकर आग पर जो पाक किया जाता है उसको हम स्नेह पाक कल्पना कहते है । 

स्नेह सिद्धि की सामान्य परिभाषा - जब स्नेह में जल का अंश पूरी तरह नष्ट हो जाये तो उसे मूर्च्छन अवस्था कहते है। उसके बाद जिस द्रव्य की स्नेह कल्पना तैयार करनी हो तो उसका चूर्ण या कल्क उस स्नेह द्रव्य में डालकर उसको आग पर पाक करना चाहिए । इस प्रकार स्नेह सिद्धि होने पर आग से उतार कर डिब्बे में भरकर सुरक्षित रखा जा सकता है ।

स्नेह के प्रकार - 1) घृत  (2) तैल (3) वसा (4) मज्जा 

निर्माण विधि का ज्ञान - स्नेह कल्पना तैयार करने के लिए औषधि द्रव्य के कल्क से स्नेह को चार गुना ज्यादा लेना चाहिए । जैसे कि द्रवो से मिला कल्क 16 तोला हो तो स्नेह 64 तोला लेना होता है । जल, दूध, कवाथ, स्वरस आदि से स्नेह चार गुना मात्रा में लेना होता है ।

स्नेह पाक के सामान्य नियम - १) धीमी आंच पर स्नेह मूर्च्छन करे ।
2) औषधियुक्त स्नेहकल्पना को उबलने से पहले आंच से उतार कर  थोड़ा ठंडा होने दे नही तो स्नेह में उबाल आने पर आग लग सकती है ।
3) मूर्च्छना करने से स्नेह की दुर्गन्ध वह आमदोष खत्म हो जाते है । और औषध द्रव्य से सुगंध आने लगती है ।    
       
स्नेह पाक के प्रकार - 1) मृदु स्नेहपाक (2) मध्य स्नेहपाक (३) खर स्नेहपाक

मृदु स्नेहपाक - जब औषध का कल्क घी में पककर गोंद की तरह हो जाये और जल का अंश खत्म हो जाये उसे मृदु स्नेहपाक कहते है इसका प्रयोग वस्तिकर्म तथा पीने के लिए किया जाता है ।

मध्य स्नेहपाक - जब औषधि का कल्क पककर हलवे जैसा गाढ़ा हो जाये और जल का अंश समाप्त हो जाये तथा कल्क की वर्ति बनने लगे उसको 
मध्य स्नेहपाक कहते है । इसका प्रयोग नस्य कर्म हेतु किया जाता है । 

खर स्नेहपाक - जब औषधि का कल्क पककर हाथ से वर्ति बनाने पर वर्ति बन जाये तथा पुनः टुकड़े टुकड़े होकर गिरने लगे और स्नेह से दग्ध पाक जैसे गन्ध आने लगे उसको खर स्नेहपाक कहते है । इसका प्रयोग मालिश के लिए किया जाता है । 

स्नेह सिद्धि के लक्षण - 1) जिस कल्क को स्नेहसिद्ध करते है उसको हाथ की अंगुलियों में लेकर यदि उसकी वर्ति बन जाये तो स्नेह को सिद्ध समझना चाहिए । 

२) औषधि कल्क मिश्रित स्नेह को चमच से आग पर डालने से चट-चट शब्द की आवाज नही आती ।  
3) तैल पाक के समय तैल के पात्र में झाग उत्पन ना होना और घृत पाक के समय घृतपात्र में फेन का शांत हो जाना स्नेहसिद्धि का लक्षण है । 
4) सुगंध, वर्ण, और रास की उत्पति होना यही स्नेहपाक का प्रमुख लक्षण मन गया है ।  
इस प्रकार स्नेह कल्पना के अंतर्गत औषधि सिद्ध घृत, औषधि सिद्ध तैल,  अन्य औषधिद्रव्यों को स्नेहसिद्ध किया जा सकता है । 

सामान्य मात्रा - 1) स्नेह सिद्धि हेतु औषधि कल्क से चार गुना घृत-तैल 
2) स्नेह से चार गुना ज्यादा द्रवद्रव्य ( स्वरस, कवाथ, हिमादि )लेना होता है। 

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