पिण्डी - कवल - गण्डूष
पिण्डी -
सभी प्रकार के नेत्र रोगों जैसे नेत्रगत व्रणों में दोष अनुसार रोग शामक औषधि को सूक्ष्म पीसकर कल्क बनाकर साफ़ कपड़े पर रखकर आँखों पर बांधते है जिससे कल्क वाला भाग पलक के ऊपर रहता है इसी विधि को पिण्डी या कंवलिका कहा जाता है | वातज नेत्र रोगों में स्निग्ध पिण्डी , पित्तज रोग में शीतल पिण्डी , कफज में सुकोष्ण पिण्डी का प्रयोग करना चाहिए |
कवल -
जब औषध द्रव्यों के कवाथ, तैलादि स्नेहन, को मुख में इतना भर लिया जाये कि मुख में धारण किये हुऐ द्रव्य को इधर उधर घुमाया जा सकता है तो इसको कवल कहा जाता है | घूमाने के बाद इस द्रव पदार्थ को मुख से निकाला जाता है | इससे मुख में स्वच्छता और अन्नपान की पैदा होती है | रोजाना दातुन से दांत साफ़ करने के बाद कवल धारण करना चाहिए | ऐसा करने से कई प्रकार के मुख रोगों का नाश होता है |
गण्डूष -
गण्डूष में औषध द्रव्यों के कवाथ को पूरा भर लिया जाता है इसमें द्रव पदार्थ को मुख में इधर उधर नहीं चला सकते | गण्डूष को तब तक धारण करके रखा जाता है जब तक आँखों से आंसू ना निकल आये और मुख तथा कंठ के दोषों का शमन न हो जाये | इसके बाद ही द्रव्य को निकालना चाहिए | यह मुख के रोगों को शांत करता है | इससे मुख में निर्मलता, लघुता आती है |
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