Monday 4 September 2017

जांगम विष - सर्पविष, सर्पों के भेद, सर्पदंश लक्षण एवं विभिन्न चिकित्सा का वर्णन

Topic - 6 

जांगम विष - सर्पविष, सर्पों के भेद, सर्पदंश लक्षण एवं विभिन्न  चिकित्सा का वर्णन | 

सर्पविष 
जंगम प्राणियों में पाये जाने वाले विष को जंगम विष कहते है | इन विषों में सर्प विष घातक और मारक होता है | सर्प सारे संसार में भूमि के सभी भागों में पाये जाते है | संसार में सर्पों की 2500 जातियां पायी जाती है | इनमें से भारत में 216 जातियां मिलती है जिनमें से मात्र 52 सांप विष वाले होते है |  सर्प एक डरपोक और आलसी जीव होता है जो किसी प्रकार क्रोधित होकर मनुष्य को काटता है सर्प का विष उसके सारे शरीर में होता है |   

सर्पों के भेद - आयुर्वेद में सर्प के दो भेद है -

1) दिव्य सर्प - वे सर्प जो आकाश में विचरण करते है जैसे वासुकी, तक्षक आदि और पौराणकि सांप |  

2) भौमिक सर्प - भूमि पर विचरण करने वाले साँपों को भौमिक सर्प कहते है |  इसके पांच भेद है - दर्वीकर, मण्डली, राजिमान, निर्विष, वैकरज्ज | 

इनमें से दर्वीकर 26 प्रकार के चक्र, हल, अंकुश का चिन्ह धारण करने वाले फनयुक्त और शीघ्र चलने वाले होते है इसका विष कटु रस और रुक्ष वीर्य होने के कारण वात को प्रकुपित करता है | 
मण्डली 22 प्रकार के अनेक प्रकार के मण्डलों से चित्रित  चपटे और मंद गति वाले अग्नि व सूर्य के समान चमक वाले होते है |  इसका विष अम्ल रस और उष्ण वीर्य होने के कारण पित्त को कुपित करता है | 
राजिमान 10 प्रकार के चिकनी अनेक प्रकार के रंगो की तिरछी और सीधी जाने वाली रेखाओं वाले होते हैं | इसका विष मधुर रस और शीत वीर्य होने से कफ को बढ़ाता है | और वैकरज्ज 3 प्रकार के होते है | 


लिंग भेद के अनुसार सर्पों के तीन भेद होते है -  

नर सांप - यह बड़े आकार के बड़ी आँखों वाले, बड़ी जीभ और ऊँची आवाज़ तथा फन वाले होते है | यह दिन में काटते है |  
मादा सांप - यह छोटे आकार के छोटी आँखों वाले तथा छोटी जीभ वाले और  इनका फन दिखाई नहीं देता यह रात्रि में काटते है | 
नपुंसक सांप - यह आयताकार चपल ,कोमल और मंद गति वाले सफेद चमक, तिरछे सिर वाले होते है जो संध्या काल में काटते हैं | 


जाति के अनुसार सर्पों के चार भेद होते है -

ब्राह्मण - यह मोती,चांदी की प्रभा तथा कपिल वर्ण,सुवर्ण कान्ति वाले सुगन्धित सर्प होते है | 
क्षत्रिय सर्प - यह स्निग्ध वर्ण, क्रोधी सूर्यचन्द्र की आकृति के होते है |   
वैश्य सर्प - यह काले,वज्र के समान लाल वर्ण के धूमवर्ण,कबूतर के समान होते है | 
शूद्र सर्प - यह भैंस, चीता के वर्ण के कठोर त्वचा वाले अनेक प्रकार के रंगों वाले होते है | 

सर्पदंश लक्षण एवं विभिन्न  चिकित्सा का वर्णन | 

सर्पदंश के लक्षण - सर्पदंश के दो प्रकार के लक्षण होते हैं - 
(1) सामान्य लक्षण- सर्प काटने से दंश स्थान पर सूजन तथा वेदना होती है इसमें चुभने जैसा दर्द होता है इसमें गाँठ बन जाती और खुजली  होती है | दंश स्थान पर जलन होती है |  
(2) विशिष्ठ लक्षण -  आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार सर्पदंश के अलग अलग लक्षण होते हैं - 
१) दर्वीकर सर्पदंश के लक्षण - इस सर्पदंश से त्वचा, नख, नेत्र, दाँत, मुख, मूत्र और दंश स्थान काले पड़ जाते है | रुक्षता, सिर में भारीपन, सन्धियों में वेदना, कटि और ग्रीवा में दुर्लबता आ जाती है |  रोगी जम्भाई  लेने लगता है और उसके शरीर में कम्पन, शूल, ऐंठन, प्यास, लालस्त्राव, मुँह से झाग आनी  शुरू हो जाती है |  तथा सारे शरीर में वात के कारण अनेक प्रकार की वेदनाएँ होती है | 
२) मण्डली सर्पदंश के लक्षण - इस सर्पदंश से त्वचा, नख, मल, मूत्र आदि पीले हो जाते है, शीत की इच्छा और सारे अंगों में सन्ताप होता है | दाह, प्यास, मूर्च्छा, ज्वर, मांस का विदीर्ण, शोथ, दंश स्थान का सड़ना, सब कुछ पीला दिखाई  देता है | और अनेक प्रकार के पित्तजन्य वेदनाएँ  होती है | 
३) राजिमान सर्पदंश के लक्षण - इस सर्प के दंश के प्रभाव से त्वचा, नख आदि सफ़ेद हो जाते है | ठंड लगकर ज्वर होता है | रोमहर्ष अंगों में जड़ता, दंश के चारों ओर सूजन, मुख से कफ का गिरना, बार-बार वमन, नेत्रों में कण्डु श्वासावरोध, आंखों के आगे अँधेरा छा जाना और कफजन्य वेदनाएँ होती है | 
४) नर सर्पदंश के लक्षण - नर सर्प के काटने से रोगी ऊपर की और देखता है और शरीर के ऊपर के भाग को सीधा करके तथा दाहिने पैर पर जोर देकर चलता है | इसके विष का वेग दिन में तीव्र और रात को मंद रहता है |
५) मादा सर्पदंश के लक्षण - मादा सर्प के काटने पर रोगी नीचे की ओर देखता रहता है तथा अधोभाग पर बल देकर बायें पैर पर जोर देकर चलता है इस विष का वेग दिन में मंद और रात्रि में तीव्र होता है | 
६) नपुंसक सर्पदंश के लक्षण - इसके काटने से रोगी तिरछा और पीछे की ओर देखता है | रोगी अधिक बोलने लगता है और ज्वर तथा अतिसार के लक्षण प्रगट होने लगते है | 
७) गर्भिणी सर्पदंश के लक्षण - इसके काटने से रोगी का मुख पीला और शोथ युक्त हो जाता है | रोगी की जीभ और आँख काली हो जाती है | जम्भाई आती है, होंठ सूख जाते है, उदर में भारीपन और शिरोरोग के लक्षण प्रकट होने लगते है | क्रोध अधिक आता है | 
८) वृद्व सर्पदंश के लक्षण - विष देरी से चढ़ता है और वेदना होती है | 

चिकित्सा - सर्पदंश होने पर तत्काल चिकित्सा करनी चाहिए | जिससे विष का प्रभाव कम हो जाता है | सर्प विष की चिकत्सा के लिए निम्नलिखित उपक्रम  करते हैं - 
1) तत्कालिक चिकित्सा - सर्वप्रथम जिस अंग पर सर्प ने काटा हो वहा पर दंश स्थान से 4 से 7 अंगुल ऊपर किसी रस्सी, वस्र तथा वृक्ष की छाल आदि से कसकर बाँध देना चाहिए इससे विष का प्रभाव शरीर के ऊपर के अंगों में नहीं पहुँच पाता | ऐसा करने से विष रक्त के साथ बाहर निकल जाता है दंश स्थान पर चीरा लगाने के बाद किसी नली की सहायता से रक्त चूसकर बाहर निकालना चाहिए | इस क्रिया को अरिष्टाबन्धन व रक्तमोक्षण कहते है| 
2) निर्विषिकरण - दंश स्थान  चीरा लगाकर पोटैशियम परमैंगनेट के घोल से धोना चाहिए और दंश स्थान पर 1- 4 ग्राम की मात्रा में रखकर किसी वस्र से  कुछ देर के लिए बन्धन बांधना चाहिए | लेक्कर्सन औषधि विष को उदासीन कर देती है इसे दंश स्थान पर लगाना चाहिए  
3) प्रतिविष प्रयोग - प्रतिविष दो प्रकार के होते है -
Specific - विशिष्ट प्रतिविष अलग अलग प्रकार के सर्पविषों के लिए पृथक - पृथक तैयार किये जाते हैं तथा इनका प्रयोग काटने वाले सांप की स्पष्ट पहचान होने पर किया जाता है अन्यथा बहुसंयोजी ( Polyvalent ) ही काम में लाया जाता है | यह चार प्रकार के सर्पविषों नाग, सामान्य करैत, रसेल वाईपर तथा दन्तुर शल्कीय वाईपर विष को उदासीकरण करने में समर्थ होता है | इसकी 1 ml. की मात्रा नाग विष के 20 ml. को निष्प्रभावी बनाने की क्षमता रखती है | प्रतिविष का प्रयोग तब करना चाहिए जब दंश की विषाक्तता के स्पष्ट लक्षण व्यक्त हो रहे हो |   
4) लाक्षणिक चिकित्सा - विशिष्ट चिकित्सा के साथ विशेष लक्षणों के शमन की भी व्यवस्था करनी चाहिए | सर्प के काटने पर अधिक बेचैनी और वेदना होने पर वेदनानाशक औषधि  एस्प्रिन देनी चाहिए | तंत्रिकाओं में अवसाद की स्थिति होने पर एड्रीनलीन, क्लोराइड, स्ट्रिक्नीन आदि औषध देने चाहिए | 


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