Wednesday, 21 December 2016

गुग्गुलु कल्प

TOPIC - 14               गुग्गुलु कल्प 

परिचय- वटी कल्पना के अंतर्गत गुग्गुलु कल्पना भी एक महत्पूर्ण कल्पना है। जो मुख्यता वातरोगों, नाड़ीरोगों व रक्त दुष्टजन्य रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है। ज़्यदातर गुग्गुलु कल्पनाओं के साथ त्रिफला आदि घटक द्रव्य होते है। गुग्गुलु कल्पना उत्तम रक्तशोधक वेदनानाशक व शोथहर है।

निर्माण विधि- त्रिफला, त्रिकटु आदि औषधियों को उचित मात्रा में लेकर उनके सामान भाग या दोगुना भाग गुग्गुलु लेकर सर्वप्रथम इमामदस्ते में थोड़ा घृत मिलाते हुए गुग्गुलु को कूटते रहते है। जितना ज़्यादा गुग्गुलु को कूटते है  यह उतना ज़्यादा गुणकारी होता है। जब गुग्गुलु मोम की तरह मुलायम हो जाये तो उसमें काष्ट औषधियों का चूर्ण डालते हुए अच्छे से कूटकर मिला लिया जाता है। फिर इसकी गोलियां बना ली जाती है। 
गुग्गुलु पाक लक्षण- (1) सुखमर्दता 
(2) स्वरस्पर्शता
(3) पकने पर द्रव्य में गंध,वर्ण,रस की उत्पति हो जाती है। 
(4)  अँगुलियों से पकड़ने पर उनकी रेखाएं बन जाती है। 
(5) जल में डालने पर फैलता नही है। 

मात्रा- 1)  भस्म रहित गुग्गुलु कल्प की मात्रा एक ग्राम तक । 
         2) भस्म सहित गुग्गुलु कल्प की मात्रा 500mg  से 750mg तक । 
अनुपान- उष्ण जल, रसनादिकवाथ, आरग्वादि कवाथ, गुडूची कवाथ एवं गोमूत्र तथा गोदुग्ध के साथ लिया जाता है। 

प्रयोग - वातरोगों, नाड़ीरोगों, रक्तविकारों, शोथ, वेदना आदि में गुग्गुलु का प्रयोग किया जाता है।   

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