Thursday 10 January 2019

शरीरोपक्रम- शरीर की व्याख्या, शरीर ज्ञान प्रयोजन |

शरीरोपक्रम- शरीर की व्याख्या, शरीर ज्ञान प्रयोजन | 


शरीर परिचय -


आयुर्वेद आयु का विज्ञान है | " शीर्यते इति शरीरम " अर्थात जिसका प्रतिक्षण क्षय होता है उसे शरीर कहते है | आयु का विज्ञान होने के कारण इसके दो मुख्य उद्देश्य है -

  1. स्वस्थ मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा करना | 
  2. रोगी के विकारों को शांत करना | 

इन दोनों उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए हमें शरीर के प्राकृतिक स्वरूप का ज्ञान होना आवश्यक है | रस, रक्त आदि धातुओं, त्रिदोषों और अंगों का ज्ञान ही शरीरिक ज्ञान है | 
मानव शरीर एक गूढ़ यंत्र के समान है शरीर का एक एक अंग यंत्र के पुर्जों के समान ही कार्य करता है | शरीर एक ऐसा यंत्र है जो दिनभर काम करने के बाद कुछ अंगों को तो निंद्रा के रूप में विश्राम देता है पर शरीर में कितने ही ऐसे अंग है जो जीवन पर्यन्त बिना थके क्रियाशील रहते है | इन अंगों में काम करते समय जो विकार पैदा होते है उन्हें हम यम, नियम, भैषज या शल्य के द्वारा दूर कर सकते है | 


शरीर शब्द की व्याख्या - 


जीवित और मृत दोनों ही अवस्थाओं में इस पंचमहाभूतों के समुदाय से निर्मित पदार्थ को शरीर कहा जाता है और दोनों ही अवस्थायें चिकित्सा शास्त्र में महत्वपूर्ण है | 
मृत शरीर का शवच्छेदन करके शरीर के विभिन्न अंगों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है | जिसके आधार पर ही जीवित प्राणी के शरीर के अंगों का ज्ञान होता है | शरीर की चिकित्सा चेतना धातु ( आत्मा ) के साथ रहने तक ही की जाती है | 
इस प्रकार चेतना तत्व युक्त पांचभौतिक शरीर जिसमें त्रिदोष, सात धातु, जठराग्नि और त्रिमल ये सभी समान रूप से ठीक प्रकार से कार्य करते है उसे ही शरीर के नाम से जाना जाता है | 


शरीर ज्ञान का प्रयोजन -


  1. शरीर का ज्ञान होना आयुर्वेद शास्त्र की दृष्टि से एक चिकित्सक के लिए अति ज़रूरी है | 
  2. शरीर में विकार पैदा होते है इस लिए विकृति के ज्ञान के लिए प्राकृति का  ज्ञान ज़रूरी है जो शरीर ज्ञान से प्राप्त होता है | 
  3. स्थूल शरीर के ज्ञान से पहले सूक्ष्म शरीर का ज्ञान होना आवश्यक है 
  4. शरीर के अंग स्वस्थ अवस्था में कैसे काम करते है और विकार की स्थिति में कैसे काम करते है इसका ज्ञान होना ज़रूरी होता है | 
  5. किसी भी दोष, धातु, मल, अवयव की पंचभौतिक रचना का ज्ञान करने के लिए शरीर का ज्ञान होना अति आवश्यक है | 
  6. शरीर में किस स्थान पर किस प्रकार का विकार पैदा हुआ है और किस अंग विशेष को प्रभावित करता है इन सबका ज्ञान शरीर द्वारा ही किया जाता है | 
  7. सर्जरी की दृष्टि से भी शरीर का ज्ञान होना ज़रूरी होता है | 
  8. चिकित्सा शास्त्र की दृष्टि से मृत देह का ज्ञान होना भी अति आवश्यक है  


    

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