आसव एवं अरिष्ट की परिभाषा एवं निर्माण विधि का ज्ञान। सिद्ध संधान के लक्षण एवं आसवारिष्ट की सामान्य मात्रा।
TOPIC- 5
आसव की परिभाषा एवं निर्माण विधि - एक मिट्टी के नये घड़े में अपकव हिम,स्वरस,या जल को रखकर गुड़-शर्करा,मधु एवं अन्य सुगन्धित काष्ठ-औषधियों का यवकूट चूर्ण करके उसको ठीक मात्रा में मिलाकर धातकी पुष्प एवं किण्वादि मिलाकर घड़े का मुख ढककर 15-25 दिनों तक समशीतोष्ण स्थान पर स्थिरता से रख देते है। संधान क्रिया होने के बाद जो तरल पदार्थ प्राप्त होता है उसको आसव कहते है।
अरिष्ट की परिभाषा एवं निर्माण विधि- काष्टऔषधियो को यवकूट करके उसका कवाथ तैयार किया जाता है। फिर इस कवाथ को मिटटी के नये घड़े में डालकर उसमे गुड़,मधु,-शर्करा मिलाकर पुनः उसमे कुछ सुगन्धित एवं कटुरस युक्त द्रव्य मिलाकर घड़े का मुख बंद करके समशीतोष्ण स्थान पर 15-25 दिनों तक रखा जाता है। जब संधान क्रिया समाप्त हो जाती है तोह उसको कपडे से छान क्र सुरक्षित रख लिया जाता है। इस मद्य युक्त द्रव को अरिष्ठ कहते है।
सिद्ध संधान के लक्षण- 1) सबसे पहले घड़े के बाहर कान लगाकर सुने। यदि उसमे सन-सन या बुद-बुद शब्द की आवाज़ सुनाई दे तो समझे कि संधान क्रिया हो रही है।
2) घड़े के मुख को खोलकर उसके अंदर एक जलती हुई माचिस की तिल्ली ले जाये। यदि तिल्ली जलती रहे तो आसव-अरिष्ट तैयार समझना चाहिए। यदि बुझ जाये तो अभी तक संधान क्रिया हो रही है ऐसा समझना चाहिए।
3) गंध,वर्ण,मद्य एवं रस की उत्पति को देखकर भी आसव अरिष्ट को तैयार समझना चाहिए ।
आसव-आरिष्ट की मात्रा- इसकी सामान्य मात्रा 20 ml. मानी गई है। 4 चम्मच = 20 ml. (1 चम्मच = 5 ml.)
आसव-आरिष्ट अनुपान- आसव आरिष्ट को 1 तोला से 2 तोला बराबर जल के साथ लिया जाता है। अर्थात 20 ml. आसव अरिष्ट को 20 ml. जल के साथ मिलाकर पीना चाहिए।
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आसव की परिभाषा एवं निर्माण विधि - एक मिट्टी के नये घड़े में अपकव हिम,स्वरस,या जल को रखकर गुड़-शर्करा,मधु एवं अन्य सुगन्धित काष्ठ-औषधियों का यवकूट चूर्ण करके उसको ठीक मात्रा में मिलाकर धातकी पुष्प एवं किण्वादि मिलाकर घड़े का मुख ढककर 15-25 दिनों तक समशीतोष्ण स्थान पर स्थिरता से रख देते है। संधान क्रिया होने के बाद जो तरल पदार्थ प्राप्त होता है उसको आसव कहते है।
अरिष्ट की परिभाषा एवं निर्माण विधि- काष्टऔषधियो को यवकूट करके उसका कवाथ तैयार किया जाता है। फिर इस कवाथ को मिटटी के नये घड़े में डालकर उसमे गुड़,मधु,-शर्करा मिलाकर पुनः उसमे कुछ सुगन्धित एवं कटुरस युक्त द्रव्य मिलाकर घड़े का मुख बंद करके समशीतोष्ण स्थान पर 15-25 दिनों तक रखा जाता है। जब संधान क्रिया समाप्त हो जाती है तोह उसको कपडे से छान क्र सुरक्षित रख लिया जाता है। इस मद्य युक्त द्रव को अरिष्ठ कहते है।
सिद्ध संधान के लक्षण- 1) सबसे पहले घड़े के बाहर कान लगाकर सुने। यदि उसमे सन-सन या बुद-बुद शब्द की आवाज़ सुनाई दे तो समझे कि संधान क्रिया हो रही है।
2) घड़े के मुख को खोलकर उसके अंदर एक जलती हुई माचिस की तिल्ली ले जाये। यदि तिल्ली जलती रहे तो आसव-अरिष्ट तैयार समझना चाहिए। यदि बुझ जाये तो अभी तक संधान क्रिया हो रही है ऐसा समझना चाहिए।
3) गंध,वर्ण,मद्य एवं रस की उत्पति को देखकर भी आसव अरिष्ट को तैयार समझना चाहिए ।
आसव-आरिष्ट की मात्रा- इसकी सामान्य मात्रा 20 ml. मानी गई है। 4 चम्मच = 20 ml. (1 चम्मच = 5 ml.)
आसव-आरिष्ट अनुपान- आसव आरिष्ट को 1 तोला से 2 तोला बराबर जल के साथ लिया जाता है। अर्थात 20 ml. आसव अरिष्ट को 20 ml. जल के साथ मिलाकर पीना चाहिए।
इसमें अन्य द्रब्य मध,शक्कर,गुड़,जिरा etc क्या क्या मिलता है और इसका मात्रा क्या होता है।
ReplyDeleteसुगंधित द्रब्य एवं मात्रा बताएं
Deleteमुख्य द्रव्य द्रव के चौथाई के करीब होता है।तथा शर्करायुक्त पदार्थ जैसे गुण शहद पंद्रह प्रतिशत के करीब होता है।अन्य सुगंधित द्रव्य की मात्रा आवश्यकता अनुसार या शास्त्रोक्त मात्रा मे मिलाये जाते है।
Deleteसटिक बाते बहुत अछे
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