स्वस्थवृत की परिभाषा,स्वस्थवृत का प्रयोजन, स्वास्थ्य के लक्षण |
स्वस्थवृत की परिभाषा-
स्वस्थवृत वह विज्ञान है जिसके द्वारा मनुष्यों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य उन्नत होता है और स्वस्थ मनुष्य का स्वस्थ स्थिर रहता है |
" It may be defined as the science of preserving and improving health."
इसीलिए सुखमय जीवन जीने के लिए स्वस्थवृत का ज्ञान होना आवश्यक है |
स्वस्थवृत दो शब्दों से मिलकर बना है स्वस्थ + वृत्त
स्वस्थ का अर्थ निरोगी जीवन और वृत्त का अर्थ कर्म | इस प्रकार निरोगी जीवन जीने के लिए जो कर्म किये जाते है उसे स्वस्थवृत कहते है |
स्वस्थवृत पालन से मनुष्य रोगों को दूर रख सकता है |
इस स्वस्थ नियमों का पालन करके मनुष्य आरोग्य रह सकता है |
स्वस्थवृत प्रयोजन -
आयुर्वेद विज्ञान के दो प्रयोजन है -
स्वस्थ मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा करना
रोगी व्यक्ति के रोग को दूर करना |
इस स्वस्थवृत विज्ञान का ज्ञान दोनों स्वस्थ और रोगी लिए आवश्यक है |
इस प्रकार स्वस्थवृत्त का प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति तथा रोगी के स्वास्थय की रक्षा करना है |
आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में स्वस्थवृत को Hygiene कहते है | अत Hygiene वह विज्ञान व् कला है जिसके द्वारा मनुष्यों का शारीरिक व् मानसिक स्वास्थ्य उन्नत होता है और मनुष्य का स्वास्थ्य स्थिर रहता है
स्वस्थ मनुष्य के स्वास्थ्य के लक्षण -
आयुर्वेद में दोष धातु और मलों की साम्यावस्था ( सामान्य अवस्था में रहना)
को स्वास्थ्य कहते है | शरीर में दो प्रकार के दोष भेद है
शारीरिक दोष , मानसिक दोष |
शरीरिक दोषों में वात, पित्त, कफ तीन दोष है और मानसिक दोषों में रज, तम दो दोष है |
इस प्रकार जिस मनुष्य में यह दोनों दोष ठीक प्रकार से काम क्र रहे हों, शरीर में अग्नि कर्म और पाचन कर्म तथा अन्य शारीरक क्रियाएं ठीक प्रकार से हो रहीं हो, जिस व्यक्ति का मन और इन्द्रियां प्रसन्न हो , धातुओं का निर्माण और पोषण तथा मलों की उत्पत्ति तथा निकास ठीक से हो रहा हो, ऐसे व्यक्ति को स्वस्थ पुरुष माना जाता है |
इसीलिए स्वास्थ्य केवल रोग और शारीरिक कमजोरी से रहित होना नहीं बल्कि शरीर, मन और वातावरण की शुद्धि होना भी माना जाता है |
शारीरिक दोष , मानसिक दोष |
शरीरिक दोषों में वात, पित्त, कफ तीन दोष है और मानसिक दोषों में रज, तम दो दोष है |
इस प्रकार जिस मनुष्य में यह दोनों दोष ठीक प्रकार से काम क्र रहे हों, शरीर में अग्नि कर्म और पाचन कर्म तथा अन्य शारीरक क्रियाएं ठीक प्रकार से हो रहीं हो, जिस व्यक्ति का मन और इन्द्रियां प्रसन्न हो , धातुओं का निर्माण और पोषण तथा मलों की उत्पत्ति तथा निकास ठीक से हो रहा हो, ऐसे व्यक्ति को स्वस्थ पुरुष माना जाता है |
इसीलिए स्वास्थ्य केवल रोग और शारीरिक कमजोरी से रहित होना नहीं बल्कि शरीर, मन और वातावरण की शुद्धि होना भी माना जाता है |
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