पुटपाक और तर्पण विधि -
पुटपाक -
पुटपाक विधि आंखों के रोगों के लिए प्रयोग की जाती है इस विधि में आँखों के चारों ओर उड़द की पीसी हुई दाल के कल्क से गोल तथा एक समान मोटी दीवार बनाई जाती है फिर इसमें तर्पण विधि से द्रव्यों का रस छोड़ा जाता है आँखों की रौशनी को बढ़ाने के लिए पुटपाक का प्रयोग किया जाता है | आचार्य सुश्रुत ने पुटपाक के तीन भेद बतायें है |
1) स्नेहन पुटपाक - इसका प्रयोग तब करना चाहिए जब नेत्र अधिक रुक्ष हो | इसके लिए मांसरस, मधुर औषध कषाय और दूध का प्रयोग करते है |
2) लेखन पुटपाक - जब नेत्र स्निग्ध हो तो लेखन पुटपाक में शहद, मस्तु त्रिफला कवाथ आदि का प्रयोग किया जाता है |
3) रोपण पुटपाक - वात, पित,रक्त और वर्ण के रोपण के लिए तिक्त द्रव्य के कवाथ को लेकर या द्रव्यों को गंभारी, कुमुद, एरंड, केला की पत्तियों में से किसी एक में अच्छी तरह लपेट कर मिटटी का लेप करके खदिर अडूसा में से किसी लकड़ी के अंगारें में तब तक पकावे जब तक वह लाल रंग का ना हो जाये | ठंडा होने के बाद इन द्रव्यों का रस निकालकर तर्पण विधि के अनुसार आंखों में भरते है |
पुटपाक कर्म करने से नेत्र निर्मल और साफ़ हो जाते है निद्रा अच्छी आती है और धूल मिटटी से आँखों पर कम प्रभाव पड़ता है | अतियोग होने पर नेत्र में पीड़ा, सूजन और तिमिर रोह भी हो सकते है |
तर्पण -
हवा धूल और धूप से रहित स्थान में प्रकाश युक्त कमरे में 3 फुट ऊँचा 2 फुट चौड़ा और 6 फुट लम्बे टेबल पर रोगी को लिटा देते है उड़द की दाल का कल्क बनाकर आँखों के चारों ओर दो अंगुल की ऊंचाई की दीवार बना दी जाती है | फिर इसमें घृतमण्ड या सुखोष्ण द्रवित रूप त्रिफलाघृत नेत्रकोश पर पलकों के बालों तक भर देना चाहिए और रोगी को बार बार आँखों को खोलने और बंद करने को कहना चाहिए | स्वच्छ नेत्रों में यह घृत 500 गिनती बोलने तक कफज नेत्र रोग में 600 गिनती तक पित्तज नेत्र रोग में 800 गिनती तक और वातज नेत्र रोगों में 1000 गिनती बोलने तक नेत्र तर्पण करना चाहिए | सम्यक तर्पण होने के बाद उड़द की बनी पाली या दीवार में छेद करके घी को बाहर निकाल देना देते है |
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