Sunday 17 September 2017

प्राचीन काल में सामूहिक विष प्रयोग और उसके प्रतिकार | जल, जलाशय, भूमि, अन्न तृण, वायुमंडल में विष प्रयोग एवं प्रतिकार

प्राचीन काल में सामूहिक विष प्रयोग और उसके प्रतिकार | 
जल, जलाशय, भूमि, अन्न तृण, वायुमंडल में विष प्रयोग एवं प्रतिकार

सामूहिक विष प्रयोग

विष का प्रयोग एक व्यक्ति या सामूहिक रूप में किया जाता है | प्राचीन काल  में सामूहिक विष प्रयोग का वर्णन मिलता है | 
सामूहिक विष प्रयोग की ज़रूरत युद्ध के समय में होती है जैसे कि आधुनिक युग में भी कई प्रकार के तीव्र गैसों का प्रयोग शत्रुओं को नष्ट करने के लिए किया जाता है | आचार्य सुश्रुत के अनुसार कई बाद युद्ध में एक राजा दूसरे राज्य पर हमला करता था तो उसके शत्रु उसकी सेना को नष्ट करने के लिए विष का प्रयोग करते थे | उस अवस्था में मार्ग के पास पेड़-पौधे, पत्ते, जल, रास्ते की भूमि अन्न वायु आदि सभी विषाक्त हो जाते थे | ऐसी हालत में विष वैद्य की सहायता से दूषित पदार्थों का ज्ञान प्राप्त किया जाता था और दूषित हुए जीवों की चिकित्सा की जाती थी | 
  
विष से दूषित जल के लक्षण

विष से दूषित हुआ जल स्वाद रहित होता है | इसमें उष्णता होती है | और अनेक प्रकार की लहरें उठती है | यह जल झाग से युक्त होता है | पक्षी और मछलियां इस पानी से मर जाती है | इस जल को छूने से पीड़ा, कण्डु और अंग पर लगाने से शोथ हो जाता है | इसको पीने से दाह पैदा होती है, बेहोशी होती है | इस जल में मनुष्य, घोड़े हाथी जो भी नहाते है उनको वमन, मोह ज्वर दाह और शोफ हो जाता है | 
विष से दूषित जल के प्रतिकार

जल को शुद्ध करने के लिए धाय, अश्वकर्ण, विजयसार, पारिभद्र, पाटल, निर्गुन्डी, मोखा, अमलतास आदि को जलाकर इनकी ठंडी हुई भस्म को जल में छिड़क देते है  जिससे जल की विषाक्ता समाप्त हो जाती है | 

विष से दूषित भूमि के लक्षण

विष से दूषित भूमि कहीं कहीं पर जली हुई होती है उस पर उगे हुए घास पौधे मुरझा जाते है | कीड़े-मकौड़े, सर्प बिच्छू आदि उस भूमि पर मरे हुए दिखाई देते है | उस भूमि पर चलने से प्राणी और पशुओं को कण्डु हो जाता है | शोथ और जलन होती है और उनके रोम और नख गिर जाते है | 

विष  दूषित भूमि के प्रतिकार

इसके प्रतिकार के लिए सारिवा को ऐलादी गण के साथ सूरा में पीसकर दूध और काली मिटटी मिलाकर छिड़काव करना चाहिए | जो अंग दूषित हुआ हो वहां पर भी छिड़काव करना चाहिए |  पूरे मार्ग पर वायविडंग, पाठा, अपराजिता का कषाय बनाकर छिड़काव करे | 

विष से दूषित तृण या भोजन के लक्षण

घास - तृण और भोजन द्रव्यों के विष से दूषित हो जाने पर जो प्राणी इनका प्रयोग करता है वह शिथिल पड़ जाता है | और बेहोशी उल्टी और अतिसार से पीड़ित हो जाता है  जिसके कारण कभी कभी मृत्यु भी हो जाती है | 

विष से दूषित भोजन के प्रतिकार -

विष से दूषित हुए भोजन के प्रतिकार  के लिए विषनाशक लेपों का प्रयोग संगीत यंत्रों पर करके उनको बजाना चाहिए | ऐसा करने पर वायुमंडल शुद्ध हो जाता है | चांदी, पारा, स्वर्ण, सारिवा इनको बराबर भाग लेकर लेप करना चाहिए | इन संगीत यंत्रो की तीव्र गर्जना के शोर से घोर विष भी प्रभावहीन हो जाता है या नष्ट हो जाता है |

विष से दूषित वायुमंडल के लक्षण -

कई बार शत्रुओं के कारण हवा और वायुमंडल दोनों विषाक्त हो जाते है | विष से दूषित वायु के सबसे ज्यादा प्रभाव आँख और नाक पर पड़ते है | धुँआ और वायु दूषित होने से पक्षी भूमि पर गिरकर बेहोश हो जाते है और श्वास, खांसी,जुकाम, शिरोरोग व नेत्ररोग से ग्रसित हो जाते है |
विष से दूषित वायुमंडल के प्रतिकार

प्रदूषित वायुमंडल के प्रतिकार के लिए लाख , हल्दी , तमालपत्र , तगर , कूठ , प्रियंगु आदि को आग में डालकर उनके धूम से विषाक्त हवा और वायुमंडल को शुद्ध करना चाहिए | 




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