Tuesday, 4 July 2017

विभिन्न विषों का ज्ञान, उनकी घातक मात्रा, घातक काल, विषाक्त लक्षण एवं चिकित्सा का वर्णन l,

TOPIC - 5 


विभिन्न विषों का ज्ञान, उनकी घातक मात्रा, घातक काल, विषाक्त लक्षण एवं चिकित्सा का वर्णन | 



                                               संखिया 



परिचय- यह एक घोर संक्षारक विष है | आयुर्वेद में इसे फेनाशम नाम से वर्णन किया गया है | यह भारी गंध स्वाद रहित शंख के समान सफेद वर्ण का ठोस पदार्थ है देखने में यह दानेदार पाउडर की तरह होता है | इसकी अपनी कोई गंध या स्वाद नहीं होता | यह जल में घुलनशील नहीं है | आग में डालने पर यह लहसुन की सी गंध देता है | यह पारदर्शी व अपारदर्शी दोनों स्वरूपों में पाया जाता है | अम्ल और तीव्र क्षारीय घोल में घुलनशील होता है | अंग्रेजी में इसे आर्सेनिक कहते है | इसके योगिक ही अधिक विषयुक्त होते है | 



भेद- आयुर्वेद में इसके अनेक भेदों का वर्णन किया गया है | जैसे स्फटिकाभ, शंखाभ,हरिद्राभ, पीताभ या रक्ताभ | इसमें से स्फटिकाभ संखिया  ही अधिक पाया जाता है | 



यौगिक-  1)आर्सेनिक आक्साइड - सोमल, सफेद संखिया 

              2) सल्फाइड आफ आर्सेनिक - हरताल, मैनशिल 
              3) कॉपर कम्पाउण्ड आफ आर्सेनिक - copper arsenic, copper aceto arsenite 


उपयोग-  1) इसका उपयोग मिश्रित धातु से एकल धातु के पृथक्क़रण के लिए किया जाता है | 

2) प्राय: कीटनाशक तथा विभिन्न जीवनाशक दवाइयों के बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है | 
3) छपाई के रंगो में या अन्य रंगों को पक्का करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है | 
4) विभिन्न प्रकार के धातु प्रक्रिया तथा धातु शोधन मिश्र धातु के निर्माण में इसका प्रयोग किया जाता है 
5) संखिया का प्रयोग आत्महत्या या परहत्या करने के लिए किया जाता है 
6) गर्भपात  कराने के लिये इसका प्रयोग किया जाता है | 
7) सामूहिक रूप में हत्या करने के लिए इसका प्रयोग पानी में मिलाकर किया जाता रहा है | 


घातक मात्रा- 3 ग्रेन  या 1.5mg  



घातक अवधि - 1) लगभग 1 से 3 घंटा तीव्र स्वरूप की विषाक्तता है | 

2) जठरान्त्रिय  विषाक्तता  12 से 24 घंटे  में उत्पन्न होती है |

विषाक्तता के लक्षण- यह प्रयोग के कुछ समय बाद ही अपनी विषाक्तता का लक्षण प्रकट करने लगता है | तीव्र विषाक्तता में तो 15 से 30 मिनट में ही लक्षण व्यक्त होने लगते है | जिसके कारण कंठ उर और आमाशय में दाह पीड़ा होने लगती है उसके बाद हल्लास व् वमन की प्रथम अवस्था में खाया हुआ भोजन निकलता है | फिर हरे और पीले रंग का द्रव्य निकलता है | जिसमें अत्यंत पीड़ा होती है मुखशोष होता है और पानी पीने से बार बार वमन होता है | जिसके कारण हाथ-पैर में ऐठन होने लगती है | वृक्कों के प्रभावित होने के कारण मूत्र में कमी, मूत्र में रक्त आने लगता है और kidney failure हो जाता है | इसके साथ त्वचा का ठंडा होना, चिपचिपा होना, नाड़ी का कमजोर परन्तु गति में तेजी, श्वास का तीव्र चलना आदि लक्षण मिलते है जिसके अंत में स्तब्धता, सन्यास आक्षेप के बाद मृत्यु हो जाती है |

चिकित्सा- 1) यदि व्यक्ति ने संखिया खा लिया है तो तुरंत वमन करवायें  जिससे खाया हुआ विष शरीर से बाहर निकल जायेगा | वमन करवाने के लिए मदनफल का चूर्ण जल से सेवन करवा दें 
2) उलटी करवाने के बाद आमाशय प्रक्षालन करना चाहिए इसके लिए पोटैशियम परमेगनेट का घोल या फेरिक ऑक्साइड घोल देना चाहिए | 
3) आमाशय प्रक्षालन के बाद जान्तव व कठकोयले का चूर्ण और मैग्नीशियम  ऑक्साइड समान मात्रा में मिलाकर पिलाना चाहिए | 
4) यदि रोगी विष खाये हुए काफी समय हो चुका है तो आमाशय से अनावशोषित अंश को निकालने के लिए मैग्नीशियम सल्फेट या एरण्ड तैल का प्रयोग करवाना चाहिए | 
5) प्रतिविष के रूप में B.A.L का प्रयोग 3mg/kg की मात्रा (I.M)  में करना चाहिए  | 
6) विषशामक के रूप में अण्डे  का सफेद भाग, घी आदि का प्रयोग किया जाता है | यह आमाशय की श्लेष्मल कला को आवृत करते है और विष के अवशोषण को रोकते है |  

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