Sunday, 13 November 2016

मान की उपयोगिता , शुष्क एवं आर्द्र, द्रव्यों का ग्रहण नियम ।



मान की उपयोगिता , शुष्क एवं आर्द्र, द्रव्यों का ग्रहण नियम ।


मान की उपयोगिता : आयुर्वेद में औषधियों के निर्माण से लेकर उसके सेवन तक पथ्य अनुपान सभी कार्यों में मान का महत्त्व्पूर्ण स्थान है द्रव्यों का प्रयोग मान के बिना निष्फल हो जाता है किसी भी औषध का प्रयोग मान के बिना नही हो सकता अगर औषधि कम या ज्यादा मात्रा में दे दी जाये तोह उसके परिणाम घातक हो सकते है आयुर्वेद में जितनी भी कल्पनायें है उनका निर्माण करने के लिए मान को ठीक-ठीक प्रयोग में लाना चाहिए । जैसे ; वटी , चूर्ण ,आसव और आरिष्ट आदि ।
मान के कम या ज्यादा होने से यह कल्पनायें प्रयोग करने के योग्य नही रह जाती विभिन्नऔषधियों को अधिक से अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए उनमे घटक द्रव्य उचित मात्रा तथा उचित मान में ही मिलाने चाहिए, व्यादि ग्रस्त तथा स्वस्थ मनुष्य को औषधि द्रव्य तथा भोजन आदि मान के अनुसार ही दिया जाना चाहिए ।
इस प्रकार वैज्ञानिक एवं सामाजिक दृष्टि से हमारे जीवन में मान का विशेष महत्व है ।

शुष्क एवं आर्द्र, द्रव्यों का ग्रहण नियम: आयुर्वेद में औषध द्रव्यों से तैयार की जाती है यह द्रव्य शुष्क एवं आर्द्र होते है औषधि बनाने के लिए शुष्क द्रव्य आर्द्र द्रव्यों के मुकाबले आधे लेने चाहिए । क्योंकि शुष्क द्रव्य गुरु और तीक्ष्ण वीर्य होते है इस लिए इनकी मात्रा आद्र द्रव्यों से आधी ली जाती है औषधि निर्माण हमेशा शुष्क द्रव्य ही लेने चाहिए क्योंकि इन्ही से औषधि उपयोगी बनती है । परन्तु यदि कहीं आद्र द्रव्य लेने पड़े तो उनको दोगुनी मात्रा में लेना चाहये । इसके इलावा कुछ द्रव्य ऐसे है जिनको हमेशा ताज़ा ही लिया जाता है किन्तु उसमे दोगुनी मात्रा नही लेते जैसेकि:- वासा, शतावरी, कुटज, प्रसारणी, गुडूची इत्यादि ।
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