Topic - 10
गन्धकाम्ल का परिचय, मारक मात्रा, लक्षण और चिकित्सा का वर्णन -
गन्धकाम्ल - SULPHURIC ACID-
परिचय-
यह एक दाहक विष है जिसका रासायनिक सूत्र H2SO4 है जोकि रंगहीन द्रव के रूप में होता है | इसकी किसी प्रकार की गन्ध नहीं होती है और वायु में खुला छोड़ देने से इसमें से किसी प्रकार का कोई धुँआ नहीं निकलता, इस अम्ल को जल में मिलाने से यह उष्ण हो जाता है | इसका विशिष्ठ घनसत्व 1.84 होता है |
सामान्य प्रयोग -
गंधकाम्ल एक बहुत उपयोगी द्रव्य है | इसका उपयोग रासायनिक द्रव्यों के निर्माण में, खाद बनाने में, पेट्रोलियम के शोधन में किया जाता है | ऐसा माना जाता है कि जिस देश में जितना गंधकाम्ल का उपयोग किया जाता है वह देश उतना ही समृद्धिशाली होता है |
विषात्मक प्रयोग -
यह शरीर के जिस अंग पर लगता है वहां पर विस्फोट, व्रण, दाह और वेदना पैदा कर देता है | त्वचा, वस्त्र, काग़ज़, लकड़ी या शरीर के अंग पर गंधकाम्ल गिरने पर वस्त्र और त्वचा झुलस जाते है |
मारक मात्रा और घातक काल -
गंधकाम्ल की घातक मात्रा 60 बून्द मानी गई है | सांद्र अम्ल = 50 से 100 ml, तनु अम्ल = 30 से 40 dl, समान मात्रा में जल मिलाने पर इसका घातक काल 4 से 24 घंटे का माना जाता है |
विषाक्त लक्षण -
शरीर के बाहरी अंगों पर लगने पर वह जल जाती है | त्वचा जलने पर तनाव होने लगता है | यदि इस विष का पान किया जाता है तो जीभ सफेद और गहरे भूरे रंग की हो जाती है | मुख अंदर से जल जाता है जिसके कारण दाह और पीड़ा होने लगती है | आमाशय व आंत्र में शोथ हो जाता है अत्यंत पीड़ा होती है और इनमें छिद्र हो जाते है और रक्त बहने लगता है |
चिकित्सा -
इस अम्ल का प्रयोग शरीर की त्वचा पर किया गया है तो जल्दी से रुई से या सूती कपड़े से पोंछ देना चाहिए फिर साफ़ जल से उसे धो देना चाहिए | फिर उस पर घी, जैतून या एरंड का तेल, ग्लिसरीन आदि स्निग्ध पदार्थ लगा देना चाहिए | इसके कारण दाह व पीड़ा का नाश हो जाता है | जिस रोगी ने गंधकाम्ल को मुख से प्रयोग किया हो तो उसको सबसे पहले दाह शमन के लिए मृदु व स्निग्ध द्रव पिलाना चाहिए | इसके लिए नवनीत घी, जैतून तेल पीने को देना चाहिए | इसके इलावा 250 gm दूध में एक अंडे का सफेद भाग, कोयले का चूर्ण दो से तीन चम्मच और दो चम्मच घी मिलाकर पिलाना चाहिए | इसके इलावा टैनिक एसिड का प्रयोग भी प्रतिविष के रूप में किया जाता है |
गन्धकाम्ल का परिचय, मारक मात्रा, लक्षण और चिकित्सा का वर्णन -
गन्धकाम्ल - SULPHURIC ACID-
परिचय-
यह एक दाहक विष है जिसका रासायनिक सूत्र H2SO4 है जोकि रंगहीन द्रव के रूप में होता है | इसकी किसी प्रकार की गन्ध नहीं होती है और वायु में खुला छोड़ देने से इसमें से किसी प्रकार का कोई धुँआ नहीं निकलता, इस अम्ल को जल में मिलाने से यह उष्ण हो जाता है | इसका विशिष्ठ घनसत्व 1.84 होता है |
सामान्य प्रयोग -
गंधकाम्ल एक बहुत उपयोगी द्रव्य है | इसका उपयोग रासायनिक द्रव्यों के निर्माण में, खाद बनाने में, पेट्रोलियम के शोधन में किया जाता है | ऐसा माना जाता है कि जिस देश में जितना गंधकाम्ल का उपयोग किया जाता है वह देश उतना ही समृद्धिशाली होता है |
विषात्मक प्रयोग -
यह शरीर के जिस अंग पर लगता है वहां पर विस्फोट, व्रण, दाह और वेदना पैदा कर देता है | त्वचा, वस्त्र, काग़ज़, लकड़ी या शरीर के अंग पर गंधकाम्ल गिरने पर वस्त्र और त्वचा झुलस जाते है |
मारक मात्रा और घातक काल -
गंधकाम्ल की घातक मात्रा 60 बून्द मानी गई है | सांद्र अम्ल = 50 से 100 ml, तनु अम्ल = 30 से 40 dl, समान मात्रा में जल मिलाने पर इसका घातक काल 4 से 24 घंटे का माना जाता है |
विषाक्त लक्षण -
शरीर के बाहरी अंगों पर लगने पर वह जल जाती है | त्वचा जलने पर तनाव होने लगता है | यदि इस विष का पान किया जाता है तो जीभ सफेद और गहरे भूरे रंग की हो जाती है | मुख अंदर से जल जाता है जिसके कारण दाह और पीड़ा होने लगती है | आमाशय व आंत्र में शोथ हो जाता है अत्यंत पीड़ा होती है और इनमें छिद्र हो जाते है और रक्त बहने लगता है |
चिकित्सा -
इस अम्ल का प्रयोग शरीर की त्वचा पर किया गया है तो जल्दी से रुई से या सूती कपड़े से पोंछ देना चाहिए फिर साफ़ जल से उसे धो देना चाहिए | फिर उस पर घी, जैतून या एरंड का तेल, ग्लिसरीन आदि स्निग्ध पदार्थ लगा देना चाहिए | इसके कारण दाह व पीड़ा का नाश हो जाता है | जिस रोगी ने गंधकाम्ल को मुख से प्रयोग किया हो तो उसको सबसे पहले दाह शमन के लिए मृदु व स्निग्ध द्रव पिलाना चाहिए | इसके लिए नवनीत घी, जैतून तेल पीने को देना चाहिए | इसके इलावा 250 gm दूध में एक अंडे का सफेद भाग, कोयले का चूर्ण दो से तीन चम्मच और दो चम्मच घी मिलाकर पिलाना चाहिए | इसके इलावा टैनिक एसिड का प्रयोग भी प्रतिविष के रूप में किया जाता है |
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