Topic- 11
आहार विष, लक्षण, आहार विषाक्ता उपचार-
आहार विष-
यदि भोजन का युक्ति पूर्वक सेवन किया जाये तो यह रसायन का फल देता है | शरीर को बलशाली बनाता है, परन्तु यदि भोजन को अयुक्ति या ठीक ढंग से सेवन नहीं किया जाता है तो यह विष का रूप होकर प्राणों का नाश करता है और विशाद पैदा करता है | आधुनिक विद्वानों ने भी आहार विष को दो भागों में बांटा है -
- जीवाणुजन्य
- अजीवाणुजन्य
जीवाणुजन्य- आहार को अगर खुला रखा है, ठंडा है, ज्यादा समय का बना हुआ है तो उस पर जीवाणु का संक्रमण हो जाता है जिसके कारण वह दूषित हो जाता है | यदि इस आहार को खाया जाता है तो व्यक्ति रोग ग्रस्त या विषाक्त हो जाता है |
अजीवाणुजन्य- भोजन को अविवेक पूर्ण या ठीक ढंग से ना ग्रहण करने से अजीवाणुजन्य विषाक्ता होती है | जिन बर्तनों में भोजन पकाया जाता है कई बार यही बर्तन विषाक्तता पैदा करते है | जैसे - तांबे के बर्तन में रखा हुआ दहीं विषाक्त ( जहरीला ) हो जाता है |
आहार विष लक्षण-
विष युक्त भोजन खा लेने से कुछ लोगों को कुछ नहीं होता, और कुछ व्यक्ति भयंकर रूप से रोग ग्रस्त हो जाते है | जीवाणुजन्य भोजन खाने से विष का प्रभाव देर से पैदा होता है, क्योंकि जीवाणु आँतों के अंदर पहुँच कर अपनी विषाक्तता पैदा करने में 12 घण्टे का समय लगाते है | परन्तु अजीवाणुजन्य विषाक्तता का आक्रमण भोजन खाने के बाद अचानक से ही होता है | इसके प्रभाव से रोगी के शरीर में कंपकपी पैदा हो जाती है, रोगी को ज्वर ( बुखार ) मिचली, वमन और उदर ( पेट ) में तीव्र (तेज ) पीड़ा, अतिसार आदि लक्षण प्रकट हो जाते है | रोगी निर्जीव और दुर्बल ( कमज़ोर ) महसूस करता है | भोजन की विषाक्ता होने से शरीर के जोड़ों में पीड़ा, पेट दर्द और आन्त्रियों में शोथ आदि लक्षण पैदा होते है |
आहार विषाक्ता उपचार-
यदि किसी मनुष्य को आहार खाने से विषाक्ता हो जाये तो सबसे पहले उस मनुष्य के पेट का धावन करना चाहिए | ऐनिमा के द्वारा आन्त्रियों को साफ़ करके मल के द्वारा विष को बाहर निकालना चाहिए | जब तक भोजन की विषाक्ता के लक्षण शांत नहीं हो जाते, तब तक रोगी को कुछ भी खाने के लिए नहीं देना चाहिए |
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