Saturday 9 September 2017

अलर्क विष के लक्षण साध्यसाध्यता एवं चिकित्सा

अलर्क विष के लक्षण, साध्यसाध्यता एवं चिकित्सा - 

अलर्क विष - हिंसक पशुओं जैसे गीदड़, भेड़िया, भालू , चीता, कुत्ता आदि दांतों से काटने से उत्पन्न विष अलर्क विष कहलाता है | परन्तु सामान्यत: कुत्ते के काटने से ही यह विष होता है | इसीलिए कुत्ते के काटने से उत्पन्न विषक्तता को अलर्क विष कहा जाता है | आधुनिक विज्ञान में इसे Hydrophobia कहा जाता है | 

अलर्क विष के लक्षण - विषाक्त कुत्ते के काटने से दंश स्थान सुन्न हो जाता है, घाव से काला खून निकलता है | सर्वदैहिक लक्षणों में ह्रदय में पीड़ा, सिरदर्द, ज्वर, अंगों में जकड़ाहट, प्यास और संज्ञा का नाश होने लगता है | दंश स्थान पर कण्डू, चुभन जैसी पीड़ा, त्वचा का रंग बदलना और पूरे शरीर पर चकत्ते हो जाते है | 
जल संत्रास - Hydrophobia- जो मनुष्य कुत्ते  काटने के बाद जल के दर्शन मात्र से उसके स्पर्श से और उसका शब्द सुनने से ही डर जाता है उसे कुत्ते ने काटा  हो या नहीं उसे जल संत्रास कहते है | 
असाध्य लक्षण - आचार्य वाग्भट्ट के अनुसार अलर्क विष से पीड़ित रोगी यदि पागल कुत्ते के समान चेष्टाएँ करने लगे जैसे अलर्क विष से पीड़ित कुत्ते के भौंकने के समान आवाज़  करने लगे और जल के दर्शन मात्र से डरने लगे तो उसे असाध्य समझना चाहिए | 

अलर्क विष चिकित्सा - जब किसी प्राणी को पागल कुत्ते ने काटा हो तो उसका तुरन्त उपचार चाहिए | 
आयुर्वेदिक चिकित्सा - 
1) सबसे पहले दंश स्थान को दबाकर दूषित रक्त को निकाल देना चाहिए | उसके बाद गर्म घी से दहन करके उसपर अलर्क विषनाशक अगद  का लेप लगा देना चाहिए | रोगी को पुराना घी पिलाना चाहिएऔर दंश स्थान पर लहसुन, मिर्च, पिप्पली और त्रिफला चूर्ण को पीसकर लगाना चाहिए | 
2) रोगी को शुद्ध कुचला, शुद्ध तेलिया विष, शुद्ध सुहागा समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर 125 mg. की मात्रा में मुख द्वारा सेवन कराना चाहिए | धतूरे के पत्तों का स्वरस, घी, गुड़ और दूध मिलाकर रोगी  पीने को देना चाहिए | अग्नितुंडी वटी और भीमरूद्र रस अलर्क विष में उपयोगी औषधि है | 

आधुनिक चिकित्सा
1) सबसे पहले दंश स्थान को निचोड़कर रक्त निकाल देते है और उसे साबुन से या डेटोल आदि से अच्छी तरह से  पानी के साथ धोते है फिर उसमें पोटैशियम परमेगनेट भर देते है और हर रोज़ स्फ्रीट से साफ़ कर बीटाडीन  पट्टी बांधते है | दंश स्थान को खुला नहीं छोड़ते हैं  जिससे संक्रमण नहीं हो सके | 
2) रोगी को तुरंत  T.T injection I/M लगा देते है 
3) एंटी बायोटिक, एनालजेसिक औषधि का प्रयोग प्रतिदिन करते है जिससे घाव जल्दी सूख जाये | 
4) टीकाकरण - एंटी रेबीज में तीन प्रकार के वैक्सीन आते है - 
a) inj. Anti  Rabis Vaccine - 4 ml. intraperitonium, 14 दिन तक
अंतर्पेशीय लगाते हैं | 
b) Human Diploid cell strain vaccine - HDC
c) Purified chick Embryo cell Rabis vaccine ( PCEC Vaccine ) - 1 ML/. Intramuscular पहले , तीसरे ,सातवें , चौदहवें ,तथा तीसवें व नब्बे वें दिन लगाते हैं | 


No comments:

Post a Comment